खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़; बंुदेलखंड का जखनी गांव बना िमसाल, अब ऐसे 1030 जलग्राम बनेंगे
शेखर घोष | नई दिल्ली .सूखे से जूझ रहे बुंदेलखंड के बांदा जिले का जखनी गांव देशभर के िलए मिसाल बनकर उभरा है। यहां ग्रामीणाें ने खेत पर मेड़ बनाकर और मेड़ पर पेड़ लगाकर गांव काे पानीदार बना िदया है। अब तालाब अाैर कुएं बारहमास लबालब रहते हैं। खेत लहलहा रहे हैं अाैर तपती गर्मी में भी गांव का तापमान अासपास के इलाकाें के मुकाबले रहता है। नीति आयोग ने जखनी को जलग्राम का माॅडल घोषित िकया है। यही नहीं, जल संकट से जूझ रहे देश के 1030 गांवाें काे जखनी की तर्ज पर जलग्राम बनाने की भी घाेषणा की गई है।
जखनी काे पानीदार बनाने के नायक और जलग्राम समिति के संयोजक उमाशंकर पांडेय कहते हैं, वर्ष 2005 में िदल्ली में जल और ग्राम विकास को लेकर एक कार्यशाला हुई थी। उसमें तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने बिना पैसे अाैर बिना तकनीक खेत पर मेड़ बनाने की बात कही थी। हमारे गांव में कोई िकसान ऐसा नहीं कर रहा था। इसलिए मैंने अपने पांच एकड़ खेत की मेड़ बनाई अाैर पानी को रोका। पहले पांच किसानों ने अनुसरण किया, िफर 20 किसान अागे अाए।
उमाशंकर बताते हैं कि गांव के लोगों को भी देसी तरीके से पानी की बचत करने का तरीका बताया गया। हर घर का प्रयोग िकया पानी पाइप लाइन और नालियों के जरिये छोटे-छोटे कुओं तक पहुंचाया जाने लगा। पूरी कवायद का फायदा यह हुआ है िक सूखे के चलते पलायन कर गए 2000 युवा गांव लौट आए। केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के सचिव यूपी सिंह ने कहा कि उनके लिए जखनी आना मक्का-मदीना की तरह है। जखनी की सफलता की कहानी का अध्ययन करने इजराइल, नेपाल के कृषि वैज्ञानिक, तेलंगाना, मप्र, महाराष्ट्र और बांदा विश्वविद्यालय के शोधार्थी अा चुके हैं।
खेतों में बनाए छोटे कुएं, पांच फीट पर िमल रहा पानी :जल शक्ति मंत्रालय द्वारा दिल्ली में आयोजित छठे भारत जल सप्ताह में आए उमाशंकर ने गुरुवार को बताया कि मेड़ के साथ खेतों में 15 फीट गहरे कुएं बनाकर बारिश का पानी सहेजा गया। इससे भूजल स्तर बढ़ा। गांव में भी 30 से अिधक कुएं हैं। इनमें पांच फीट पर ही पानी िमल रहा है।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar https://www.bhaskar.com/delhi/delhi-ncr/news/weeds-on-the-field-trees-on-the-weir-mishl-became-jakhani-village-of-bundelkhand-now-10-01652057.html