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1965 War : जब 'छोटा कद' देख पाकिस्तान ने कर दी बड़ी गलती, तब 22 दिन की उस जंग को रोकने UN को आना पड़ा

नई दिल्ली: भारत से हर बार जंग में पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी है। कश्मीर पर बुरी नजर रखने वाले पड़ोसी ने लगातार घुसपैठिए भेजने के लिए घाटी को सुलगाने की साजिश रची। जंग के मैदान में मात मिली, तो प्रॉक्सी वॉर का सहारा लिया। लेकिन पाकिस्तान कितना शातिर है इसको समझने के लिए 57 साल पहले 1965 के समय में चलना होगा। 1962 की जंग में चीन से मिली हार से भारत अभी उबर रहा था। पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की मौत हो चुकी थी और लाल बहादुर शास्त्री देश के नए प्रधानमंत्री थे। पाकिस्तान को लगा कि कद में छोटे दिखने वाले शास्त्री कमजोर होंगे और तीन तरफ से युद्ध छिड़ने पर ठीक से हालात को संभाल नहीं पाएंगे। उसे कश्मीर हड़पने का सबसे अच्छा मौका नजर आया। अप्रैल 1965 में कच्छ के बड़े इलाके पर पाकिस्तान ने अपना हक जमाया। उसके ऑपरेशन का नाम था डेजर्ट हॉक। यह भारत के खिलाफ युद्ध शुरू करने की दिशा में पहला कदम था। अगस्त आते-आते पाकिस्तान की सेना ने ऑपरेशन जिब्राल्टर के नाम से कश्मीर में सैन्य ऑपरेशन शुरू कर दिया। इसका मकसद एलओसी को पार कर कश्मीर की मुस्लिम आबादी को सरकार के खिलाफ उकसाना था। पाकिस्तान का कोडनेम भी विदेशी पाक फौज के आकाओं को लग रहा था कि इस तरह से यह स्थानीय कश्मीरियों की बगावत नजर आएगी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान इसे उछाल सकेगा। कोडनेम भी पाकिस्तान ने पुतर्गाल और स्पेन पर मुस्लिम आक्रमण से लिया था जो जिब्राल्टर पोर्ट से शुरू किया गया था। लालबहादुर शास्त्री ने सेना को खुली छूट दे दी। 28 अगस्त को भारत ने हाजीपीर पर कब्जा कर लिया। इस बीच, सोची-समझी साजिश के तहत पाकिस्तान ने तीसरा ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम शुरू कर दिया। पाकिस्तान को लग रहा था कि इस तरह चौतरफा अटैक से भारत घबरा जाएगा। लेकिन उसने शास्त्री को समझने में भूल कर दी। वह दोहा यहां फिट बैठता है- देखन में छोटे लगे, घाव करे गंभीर। राष्ट्रपति भवन सोने जाता था शास्त्री जी का परिवार हालात खराब हो चुके थे। ऐसे में प्रधानमंत्री और उनके परिवार को भी विशेष सुरक्षा में रखा गया। शास्त्री जी के बेटे अनिल शास्त्री ने एक इंटरव्यू में बताया था कि प्रधानमंत्री निवास पर परिवार की सुरक्षा के लिए एक बंकर बनाया गया था। उस समय सुरक्षा के मद्देनजर शास्त्री जी का पूरा परिवार राष्ट्रपति भवन में सोने जाता था। तत्कालीन राष्ट्रपति राधाकृष्णन का मानना था कि राष्ट्रपति भवन की दीवारें ज्यादा मजबूत हैं। तारीख थी 1 सितंबर 1965 1 सितंबर को पाकिस्तान की सेना अखनूर पुल तक आ पहुंची थी। अब भारत की बारी थी। भारतीय फौज ने 6 सितंबर को पंजाब फ्रंट पर मोर्चा खोल दिया और सेना लाहौर की तरफ बढ़ चली। 24 घंटे में सियालकोट सेक्टर में भारतीय सेना तेजी से आगे जा रही थी। पाकिस्तान की सेना खेमकरण की तरफ बढ़ी और यहां भीषण टैंक युद्ध लड़ा गया। भारतीय फौज को हावी होता देख पाकिस्तान सहम गया। इधर, जंग लड़ी जा रही थी उधर, संयुक्त राष्ट्र में हलचल बढ़ गई थी। जंग रोकने आए संयुक्त राष्ट्र महासचिव 4 सितंबर 1965 को सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव 209 (1965) के जरिए सीजफायर का आह्वान किया और दोनों देशों की सरकारों से संयुक्त राष्ट्र की टीम (UNMOGIP) के साथ सहयोग करने को कहा, जिसे सीजफायर की निगरानी करने का जिम्मा 16 साल पहले ही सौंपा गया था। दो दिन बाद सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव 210 स्वीकार किया और महासचिव से हरसंभव कोशिश करने का अनुरोध किया। इसके जरिए संयुक्त राष्ट्र चाहता था कि उसका सैन्य पर्यवेक्षण समूह जंग रोक सके। 7 से 16 सितंबर तक महासचिव ने उपमहाद्वीप का दौरा किया। दोनों देशों की शर्तों पर फंसा पेंच 16 सितंबर को उन्होंने सुरक्षा परिषद को दी अपनी रिपोर्ट में बताया कि दोनों पक्षों ने संघर्षविराम की बात कही है लेकिन दोनों शर्तें रख रहे हैं और ऐसे में मुश्किल हो रही है। इसके बाद महासचिव ने सुरक्षा परिषद को सुझाव दिया कि वह अपने स्तर पर कुछ ठोस कदम उठाए। पहला, दोनों सरकारों को यूएन चार्टर के आर्टिकल 40 के तहत आगे सैन्य ऐक्शन रोकने को निर्देशित करे। दूसरा, दोनों पक्षों से सैनिकों की वापसी सुनिश्चित करने को कहा जाए। तीसरा, दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों से अनुरोध किया जाए कि वे किसी मित्र देश में मिलकर संकट का हल निकालें। आखिरकार 20 सितंबर को परिषद ने प्रस्ताव 211 पारित किया जिसके तहत कहा गया कि 22 सितंबर 1965 को सुबह 7 बजे से सीजफायर होगा। साथ ही दोनों देशों के सैनिक पीछे हटकर 5 अगस्त से पहले वाली स्थिति में चले जाएंगे। बाद में जनवरी 1966 में भारत और पाकिस्तान के नेता ताशकंद (तब सोवियत संघ) में मिले और शांति समझौता हुआ था।


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