27 मार्च 1982 को लखनऊ कन्वेंशन, 28 को इंदिरा गांधी और मेनका का झगड़ा... जानिए इस तस्वीर का किस्सा
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजनीति ने कई नेताओं को उनका राजनीतिक मुकाम हासिल करने में मदद की। लेकिन, लखनऊ की राजनीति में एक घटना ऐसी घटी, जिसने एक परिवार में अलगाव के बीज बो दिए। जी हां, हम बात कर रहे हैं, गांधी परिवार के बीच विवाद की। दरअसल, यह विवाद लखनऊ के एक कार्यक्रम से अधिक जोर पकड़ा। कार्यक्रम का आयोजन 27 मार्च 1982 को हुआ था। संजय गांधी के फाइव पाइंट प्रोग्राम को लेकर कन्वेंशन का आयोजन हुआ। इसका आयोजन संजय गांधी और मेनका गांधी के करीबी रहे कांग्रेस कार्यकर्ता अकबर अहमद डंपी की ओर से हुआ था। लखनऊ के कैसर बाग में हुए इस कार्यक्रम के बाद गांधी परिवार के बीच विवाद गहराया था। क्या था आयोजन? 27 मार्च 1982 को लखनऊ के कैसरबाग में फाइव पाइंट प्रोग्राम पर कन्वेंशन का आयोजन हुआ था। संजय गांधी के दोस्त अकबर अहमद डंपी ने संजय विचार मंच के तहत कार्यक्रम के आयोजन की योजना तैयार की। संजय गांधी के निधन से पहले से ही मेनका गांधी सक्रिय राजनीति में आना चाहती थीं। लेकिन, इंदिरा गांधी ने इस पर रोक लगा दी थी। संजय गांधी के निधन के बाद डंपी ने संजय गांधी के विचारों को आगे बढ़ाने के लिए मंच बनाकर कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की। कार्यक्रम का आयोजन पहले ही होना था। डंपी ने इस कार्यक्रम में मेनका गांधी को आमंत्रित किया, लेकिन इंदिरा गांधी ने उन्हें अनुमति नहीं दी। इंदिरा के मना करने के बाद मेनका भी तब कार्यक्रम में जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाईं। मार्च 1982 में लंदन में इंडिया फेस्टिवल का आयोजन होना था। बतौर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इस कार्यक्रम में भाग लेना था। उनका यह दौरा कई दिनों का था। इसी दरम्यान लखनऊ में संजय गांधी विचार मंच के तहत कार्यक्रम के आयोजन की योजना तैयार की गई। 27 मार्च 1982 की तिथि तय हुई। इंदिरा गांधी की अनुपस्थिति में लखनऊ में कार्यक्रम का आयोजन हुआ। लखनऊ के कार्यक्रम में भाग लेने के मेनका दिल्ली से पहुंच गईं। यहां उन्होंने कार्यक्रम में भाग लिया। संजय गांधी के विचारों को आगे बढ़ाने की बात कही। इंदिरा गांधी के दिल्ली पहुंचने से पहले मेनका दिल्ली वापस आ गई हैं। 28 मार्च को क्या हुआ था? इंदिरा गांधी को लगता था कि संजय गांधी के दोस्त मेनका की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को भड़का रहे हैं। ऐसे में दिल्ली लौटते ही मेनका के लखनऊ कार्यक्रम की उन्हें जानकारी मिली। इंदिरा ने मेनका को जमकर खरी-खोटी सुनाई थी। 28 मार्च 1982 की उस रात की कहानी को खुशवंत सिंह, पुपुल जयकर आदि लेखकों ने अलग-अलग तथ्यों के आधार पर अपनी किताबों में लिखा है। 28 मार्च 1982 की रात की घटना का वर्णन इनकी किताबों में विस्तार से मिलता है। खुशवंत और पुपुल जयकर दोनों ने घटना के बारे में लिखा है कि यह लड़ाई आम भारतीय परिवारों में होने वाली सास-बहू की लड़ाई के जैसी थी। बिल्कुल वैसी ही। वैसी ही गालियां। इंदिरा गांधी ने मेनका को घर से निकलने को कह दिया। वरुण गांधी को देने से इनकार कर दिया। इंदिरा गांधी के झगड़े के बाद गुस्साई मेनका गांधी ने प्रेस को फोन किया। उनकी बहन अंबिका प्रधानमंत्री आवास पहुंची थी। अंबिका और इंदिरा गांधी के बीच भी जमकर बहस हुई थी। अंबिका ने जब आवास को संजय गांधी का भी घर कहा तो इंदिरा गांधी ने उसे पीएम आवास बता दिया। सिक्योरिटी अफसर एनके सिंह को उन्हें घर से निकालने का आदेश दिया। इस पर एनके सिंह ने इंदिरा गांधी से लिखित आदेश मांग लिया था। खुशवंत सिंह लिखते हैं कि इंदिरा गांधी को परेशान करने के लिए मेनका और अंबिका ने टीवी पर अमिताभ बच्चन की फिल्म लगा दी। टीवी का वॉल्यूम हाई कर दिया। इससे इंदिरा गांधी का पारा और गरम हो गया। इसके बाद आरके धवन और राजीव गांधी बीच-बचाव में जुटे। आरके धवन ने दोनों बहनों को समझाया। इस बीच मेनका गांधी ने ट्रंक में सारा सामान भर लिया था। इंदिरा गांधी ने गुस्से में सामान की तलाशी का आदेश दे दिया। जमकर हंगामा हुआ। पीएम आवास के बाहर प्रेस की भीड़ जमा थी। इंदिरा जानती थीं कि इस समय बाहर निकलने की स्थिति में फजीहत और बढ़ सकती है। ऐसे में उन्होंने मेनका की सारी शर्तें मान ली। घर छोड़ने से पहले वरुण को भी जाने दिया गया। पीएम हाउस की ही कार से मेनका, वरुण और अंबिका को रवाना किया गया। इस पूरी घटना के जड़ में यह तस्वीर ही बड़ी भूमिका निभाई थी। इसलिए, यूपी और देश की राजनीति में इस तस्वीर का अपना अलग ही महत्व माना जाता है।
from https://navbharattimes.indiatimes.com/metro/lucknow/politics/lucknow-kaiserbagh-convention-story-which-was-made-for-maneka-reason-for-separation-from-gandhi-family/articleshow/94198623.cms