दुनिया में कहां-कहां बचे हैं एशियाई चीते? चीतों के बारे में ये बातें जानतें हैं आप
नई दिल्ली : जो 70 साल पहले विलुप्त हो गए थे देश में फिर से वह जंगलों में दौड़ लगाएंगे। 1948 में जिन्हें आखिरी बार देखा गया था उनका परिवार फिर से मध्यप्रदेश के जंगल में बढ़ेगा। यूं तो ये नामिबिया से आ रहे हैं लेकिन इनका इतिहास हजारों साल पुराना है। बात हो रही है की। बताया जाता है कि देश में करीब 450 साल पहले तक 1000 से अधिक चीते जीवित थे। मगर जलवायु परिवर्तन के साथ ही जगंलों में शिकार नहीं मिलने के कारण यह देश से लगभग विलुप्त हो गए। अकबर के काल में चीतों को कैद करने के चलन शुरुआत हुई। बाद में कई चीतों को शिकारियों ने मार दिया। 1947 में चीते का आखिरी शिकारमाना जाता है कि मध्य प्रदेश के कोरिया के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने 1947 में देश में अंतिम तीन चीतों का शिकार कर उन्हें मार गिराया था। साल 1952 में भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से देश से चीतों के विलुप्त होने की घोषणा की थी। एक समय ऊंचे पर्वतीय इलाकों, तटीय क्षेत्रों और पूर्वोत्तर को छोड़कर पूरे देश में चीतों के गुर्राने की गूंज सुनाई दिया करती थी। शिकार के लिए चीतों को पकड़ने और कैद में रखने के कारण प्रजनन में आने वाली दिक्कतों के चलते इनकी आबादी में गिरावट आई। बीसवीं शताब्दी की शुरुआत तक भारतीय चीतों की आबादी गिरकर सैंकड़ों में रह गई और राजकुमारों ने अफ्रीकी जानवरों को आयात करना शुरू कर दिया। 1918 से 1945 के बीच लगभग 200 चीते आयात किए गए थे। एशियाई शेर के बदले एशियाई चीतेअंग्रेजों के भारत से जाने और रियासतों के एकीकरण के बाद भारतीय चीतों की संख्या कम होने के साथ-साथ इनसे किए जाने वाले शिकार का चलन भी खत्म हो गया। साल 1952 में स्वतंत्र भारत में वन्यजीव बोर्ड की पहली बैठक में सरकार ने मध्य भारत में चीतों की सुरक्षा को विशेष प्राथमिकता देने का आह्वान करते हुए इनके संरक्षण के लिए साहसिक प्रयोगों का सुझाव दिया था। इसके बाद, 1970 के दशक में एशियाई शेरों के बदले में एशियाई चीतों को भारत लाने के लिए ईरान के शाह के साथ बातचीत शुरू हुई। ईरान में एशियाई चीतों की कम आबादी और अफ्रीकी चीतों के साथ इनकी अनुवांशिक समानता को ध्यान में रखते हुए भारत में अफ्रीकी चीते लाने का फैसला किया गया। कहां से आया चीता शब्दचीता शब्द संस्कृत के चित्रक शब्द से आया है, जिसका अर्थ चित्तीदार होता है। भोपाल और गांधीनगर में नवपाषाण युग के गुफा चित्रों में भी चीते नजर आते हैं। बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) के पूर्व उपाध्यक्ष दिव्य भानु सिंह की लिखी एक पुस्तक 'द एंड ऑफ ए ट्रेल-द चीता इन इंडिया' के अनुसार, '1556 से 1605 तक शासन करने वाले मुगल बादशाह अकबर के पास 1,000 चीते थे। इनका इस्तेमाल काले हिरण और चिकारे के शिकार के लिए किया जाता था। अब सिर्फ ईरान में ही बचे हैं एशियाई चीते एशियाई चीते अब सिर्फ ईरान में ही पाए जाते हैं। एशियाई चीता विलुप्तप्राय प्रजातियों में से एक है। यह ईरान के विशाल केंद्रीय रेगिस्तान में बाकी बचे उपयुक्त निवास स्थान में रहता है। साल 2015 तक, ईरान में सिर्फ 20 चीता थे लेकिन अभी भी कुछ इलाकों का सर्वेक्षण नहीं किया गया है। अनुमान के अनुसार एशियाई चीतों की कुल आबादी करीब 40 से 70 है। व्यस्क एशियाई चीते के शरीर की लंबाई 112 से 135 सेमी तक हो सकती है। इसका वजन करीब 34 से 54 किलोग्राम के बीच होता है लेकिन नर चीता मादा से थोड़ा बड़ा होता है। इसके शरीर पर बहुत अधिक फर होते हैं। इनका सिर छोटा और लंबी गर्दन होती है। इनकी आंखें लाल होती हैं और यह देखने में बिल्ली जैसे लगते हैं। एशियाई चीते छोटे हिरणों का शिकार करते हैं। ईरान में, जेबीर गजेली (चिंकारा भी कहा जाता है), ग्वाइटर्ड गजेली, जंगली भेड़ें, जंगली बकरी और खरहा इनका मुख्य भोजन हैं। एशियाई चीता 120 किमी/ घंटा की रफ्तार से दौड़ सकता है।
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