काफिर, जिहादी, पाकिस्तानी... नफरती उन्माद के बीच मुस्लिम विद्वानों से क्यों मिल रहे मोहन भागवत?
नई दिल्ली: सरसंघचालक पहली बार किसी मदरसे में यूं ही नहीं गए हैं। इसके पीछे एक नेक मंशा है। वह मंशा देश को एकसूत्र में पिरोने की, सांप्रदायिक सौहार्द्र को मजबूत करने की, गंगा-जमुनी तहजीब वाले मुल्क में ऐसा तालमेल बिठाने की जिसे देख माहौल खराब करने वाले भी घबराएं। दरअसल, देश के मुसलमानों में संघ को लेकर अलग धारणा रही है, दूसरी तरफ कुछ मुसलमानों की शिकायत रहती है कि उनसे देशभक्ति का सबूत साबित करने को कहा जाता है। कभी राष्ट्रगान को लेकर विवाद, कभी पाकिस्तान चले जाओ की गूंज के साथ ही ज्ञानवापी जैसे धार्मिक मसलों से तल्खी बढ़ जाती है। हेट स्पीच से एक गैप बन जाता है। ऐसे में संघ प्रमुख के मुस्लिम समुदाय से मिलने-जुलने (Mohan Bhagwat Meeting) को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। वह हिंदुओं की चिंताओं को सामने रखते हुए मुस्लिम समुदाय की बातों और चिंताओं को ध्यान से सुन रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मुलाकात के दौरान पाकिस्तानी, काफिर (गैर मुस्लिमों के लिए इस्तेमाल होने वाला), जिहादी जैसे शब्दों का भी जिक्र आया। दरअसल, हमारे समाज में ही कुछ लोग अनाब-शनाब बोलते रहते हैं जिससे समाज में गलत संदेश जाता है। भागवत की मेल-मुलाकात उस दिशा में मतभेद, मुनमुटाव, नाराजगी को दूर कर एक सौहार्द्र कायम करने की पहल है। 'डीएनए एक' के पीछे क्या संदेश जब संघ प्रमुख मोहन भागवत भारत में रहने वाले लोगों का DNA एक कहते हैं, तो उनका संदेश होता है कि देश में रहने वाले सब भारतीय हैं, उनका धर्म, मजहब, पहनावा, खानपान सब बाद में आता है। पहले नंबर पर भारतीयता होती है और यही विविधता में एकता हमारी ताकत है। गुरुवार को इसी संदेश के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने दिल्ली में एक मस्जिद और मदरसे का दौरा किया। उन्होंने अखिल भारतीय इमाम संगठन के प्रमुख उमर अहमद इलियासी के साथ करीब एक घंटे तक बातचीत की, मदरसे में बच्चों से भी मिले। आल इंडिया इमाम आर्गेनाइजेशन भारतीय इमाम समुदाय का प्रतिनिधि संगठन है और दावा किया जाता है कि यह विश्व का सबसे बड़ा इमाम संगठन है। राष्ट्रपिता कहने पर भागवत ने टोका मुस्लिम समुदाय तक अपनी पहुंच बढ़ाते हुए संघ प्रमुख ने यह पहल की है। इस तरह मोहन भागवत के मिलने आने से गदगद दिखे ऑल इंडिया इमाम ऑर्गेनाइजेशन के प्रमुख उमर अहमद इलियासी ने उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ कह दिया। संघ के एक पदाधिकारी ने बताया कि उन्होंने मदरसे के बच्चों से बातचीत के दौरान भागवत को ‘राष्ट्रपिता’ बताया। हालांकि, भागवत ने तत्काल उन्हें टोकते हुए कहा कि देश में एक ही राष्ट्रपिता हैं और बाकी सभी भारत की संतानें हैं। उन्होंने कहा कि आरएसएस प्रमुख ने देश को जानने-समझने की जरूरत पर बच्चों से बात की और कहा कि दुआ या पूजा करने के तौर-तरीके अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन सभी धर्मों का अवश्य ही सम्मान किया जाना चाहिए। हम सभी के लिए राष्ट्र प्रथम RSS के सरसंघचालक मध्य दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग स्थित एक मस्जिद में पहुंचे। उसके बाद उन्होंने उत्तरी दिल्ली के आजादपुर में मदरसा तजावीदुल कुरान का दौरा भी किया। इलियासी ने कहा कि भागवत उनके न्योते पर मदरसे का दौरा करने आए हैं। उन्होंने कहा कि हमने देश को मजबूत बनाने के लिए विभिन्न मसलों पर चर्चा की। इलियासी ने कहा, ‘भागवत के इस दौरे से संदेश जाना चाहिए कि भारत को मजबूत बनाने के लिए हम सभी मिलकर काम करना चाहते हैं। हम सभी के लिए राष्ट्र सर्वोपरि है। हमारा DNA समान है, सिर्फ हमारा धर्म और इबादत के तौर-तरीके अलग-अलग हैं।’ भागवत के साथ संघ के प्रमुख पदाधिकारी भी आए थे। संघ प्रमुख भागवत सभी धर्मों के लोगों के बीच भाईचारा मजबूत करने के लिए मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ चर्चा कर रहे हैं। हाल ही में उन्होंने दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल जमीरउद्दीन शाह, पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी और कारोबारी सईद शेरवानी से मुलाकात की थी। मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने समझाया काफिर का मकसद मीटिंग की जानकारी रखने वाले लोग बताते हैं कि इस मुलाकात में भागवत ने हिंदुओं के लिए ‘काफिर’ शब्द के इस्तेमाल का मुद्दा उठाया। संघ प्रमुख ने कहा कि इससे अच्छा संदेश नहीं जाता है। वहीं, मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने कुछ दक्षिणपंथी संगठनों की ओर से मुसलमानों को ‘जिहादी’ और ‘पाकिस्तानी’ बताए जाने पर आपत्ति जताई। अक्सर खबरों में आता है कि कुछ लोग और नेता भी अति उत्साह में 'पाकिस्तान चले जाओ' जैसी बातें करने लगते हैं। इससे माहौल खराब होता है। मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने भागवत को यह भी बताया कि ‘काफिर’ शब्द के इस्तेमाल के पीछे मकसद कुछ और है लेकिन कुछ वर्गों में अब इसे अपशब्द के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। आरएसएस प्रमुख ने बुद्धिजीवियों की चिंताओं को गंभीरता से लिया और इस बात पर जोर दिया कि सभी हिंदुओं और मुसलमानों का डीएनए एक ही है।
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