हर्बल फार्मिंग से लाखों कमा रहा है गाजीपुर का यह किसान, दूसरों के लिए पेश की नजीर
गाजीपुर: गाजीपुर के अमौरा गांव के रहने वाले बुजुर्ग किसान इस समय अपने क्षेत्र के किसानों के लिए मिसाल बने हुए हैं। औषधीय पौधों की खेती में उन्होंने अपने जीवन के 21 साल समर्पित कर दिए। उन्हें अपने प्रयासों के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम सहित कई अन्य हस्तियों से सराहना मिल चुकी है। सिंह ने एनबीटी ऑनलाइन को बताया कि हर्बल खेती का सिलसिला 2001 से शुरू हुआ। वह एक परिचित के घर गए थे, जहां उन्हें उद्यमिता नाम की पत्रिका पढ़ने को मिली। उस पत्रिका में उन्होंने मध्यप्रदेश के रखने वाले राजा राम त्रिपाठी का लेख पढ़ा, जिसमें से जुड़ी जानकारी दी हुई थी। इस लेख को पढ़ने के बाद रंग बहादुर सिंह से राजा राम त्रिपाठी से संपर्क किया। राजा राम त्रिपाठी से बात होने के बाद हर्बल खेती की बारीकियों को समझने के लिए रंग बहादुर बस्तर जिले के कोड़ा गांव में बने त्रिपाठी के फार्म हाउस तक जाने का निर्णय लिया। त्रिपाठी उस वक़्त 500 एकड़ में हर्बल खेती कर रहे थे। इसके लिए उन्होंने कुल 8 फार्म हाउस विकसित किए थे। 50 साल की उम्र में हर्बल फार्मिंग का फैसलाउस समय रंग बहादुर की उम्र 50 साल थी। फार्म हाउस घूमने के बाद रंग बहादुर ने जब खुद के गांव में हर्बल खेती करने की मंशा जताई तो त्रिपाठी ने कहा कि आराम करने की उम्र में वह भला हर्बल फार्मिंग कैसे करेंगे। लेकिन,इस संवाद से सिंह का मनोबल गिरने की जगह, उनका हर्बल फार्मिंग का संकल्प और मजबूत हो चला। यूपी सरकार से मिला 1 लाख का इनाम अपने गांव वापस आकर सिंह ने 5 से 7 हजार का निवेश करके जमीन के छोटे से टुकड़े पर प्रयोग के तौर पर औषधीय पौध कालमेघ, मसकदाना लगाए। दोनों हर्बल पौधों को सिंह करीब आधे एकड़ रकबे में लगाया था। इससे उन्हें करीब 3 कुंतल कालमेघ और करीब 3 किलो उसका बीज हासिल हुआ। उस साल करीब 50 किलो मसकदाना की पैदावार हुई। इससे सिंह को मोटा मुनाफा हुआ। इससे उत्साहित होकर उन्होंने बड़े पैमाने पर हर्बल खेती करने का निर्णय लिया। सिंह को हर्बल खेती के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए यूपी सरकार से 1 लाख रूपए का पुरस्कार प्राप्त हुआ। राष्ट्रपति कलाम ने बडे़ सपने देखना सिखायासाल 2004 में देश भर के प्रगतिशील किसानों के डेलिगेशन से राष्ट्रपति से मिलने का कार्यक्रम तय हुआ। तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से मुलाकात करने वाले इस डेलिगेशन में रंग बहादुर भी शामिल थे। मुलाकात के दौरान राष्ट्रपति कलाम ने रंग बहादुर को अपने हर्बल पैदावार की प्रोसेसिंग और मार्केटिंग करने की बात कही। इसके बाद इन्होंने मेडिसिन बोर्ड से अनुमति लेने के बाद काशी आर्गेनिक नेचुरल प्रोडक्ट नाम की संस्था की नींव रखी। आज यह संस्था करीब 15 हर्बल प्रोडक्ट बनाती है। हर्बल खेती के अपने स्किल को विस्तार देने के लिए रंग बहादुर ने इस विषय पर कुछ किताबों को मंगाया और उसका अध्ययन किया। रंग बहादुर के अनुसार साल 2007 तक जनपद और आसपास में करीब 500 हर्बल खेती करने वाले किसान थे। कुछ समय के साथ आने वाली चुनौतियों के कारण हर्बल खेती छोड़ गए। कुछ आज भी हर्बल खेती कर रहे हैं। अब शुरू करने जा रहे हैं लैबरंग बहादुर फिलहाल 7 से 8 एकड़ के रकबे में हर्बल खेती कर रहे हैं जिससे उनकी फर्म को सालाना 8 लाख की इनकम होती है। वह अपने हर्बल फार्म में औषधीय पौधा लेमनग्रास, सेक्ट्रेनेला, बच, सर्पगंधा, अश्वगंधा, कालमेघ, सतावर, मसकदाना, अडूसा, गुलाब कली आदि को लगाते हैं। इससे निकलने वाले हर्बल एक्सट्रेक्ट की प्रोसेसिंग कर मार्किट में भेजते हैं। वर्तमान में उनकी संस्था ने ग्रामीण आयुर्वेद लैब के लिए शासन को प्रोजेक्ट रिपोर्ट भेजा है। इस प्रोजेक्ट को अनुमति मिलने के बाद इसपर काम शुरू होगा। इस लैब की कुल अनुमानित लागत 5 करोड़ के करीब है। इसमें रंग बहादुर की संस्था के साथ अन्य संस्थाओं का संयुक्त तत्वावधान रहेगा।(इनपुट: अमितेश सिंह)
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