भारत के सामने हथियार डालने वाले पाकिस्तान के जनरल नियाजी और पूर्व पीएम इमरान खान का रिश्ता
इस्लामाबाद: प्रधानमंत्री पद जाने के बाद इमरान खान आए दिन खबरों में बने हुए हैं। पिछले दिनों उन्होंने पाकिस्तान आर्मी के चीफ की नियुक्ति पर बड़ा बयान दिया। एक इंटरव्यू में उन्होंने जनरल कमर जावेद बाजवा का कार्यकाल बढ़ाने की बात कही। उनके इस बयान पर विवाद शुरू हो गया है। कई लोग कह रहे हैं कि इमरान को सेना के मामलों से दूर रहना चाहिए। इमरान की आर्मी चीफ की नियुक्ति वाली बात कितनी ही साबित होती है, यह तो आने वाला समय बताएगा। लेकिन पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के मुखिया इमरान सेना को बखूबी समझते हैं। इमरान, उन्हीं लेफ्टिनेंट जनरल के खानदान से आते हैं जिन्होंने भारत के सामने हथियार डाल दिए थे। इमरान ने हटाया था नियाजी इमरान ने इस साल मई में एक रैली में कहा था कि उन्हें इमरान खान की जगह इमरान नियाजी बुलाया जाना चाहिए। यह बात उन्होंने मियांवली की एक रैली में कही थी। इमरान का कहना था, 'अगर देश के 'डकैत' उन्हें इमरान नियाजी बुलाते हैं, तो उन्हें अच्छा लगेगा।' 20 अगस्त 2018 को इमरान खान ने कैबिनेट डिविजन को एक नोटिफिकेशन जारी किया था। इसमें उन्होंने निर्देश दिया था कि उन्हें आधिकारिक संपर्क में इमरान खान से ही संबोधित किया जाए न कि उनके पूरे नाम इमरान अहमद खान नियाजी बुलाया जाए। हार का अहसास नियाजी इमरान खान पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम पंजाब से आते हैं और पठान हैं। वह नियाजी जनजाति से गहरा ताल्लुक रखते हैं। उनक पिता इकरमुल्ला खान नियाजी एक इंजीनियर थे। नियाजी को दरअसल पाकिस्तान में एक गाली की तरह समझा जाता है और इसलिए ही पूर्व पीएम इस नाम को छिपाते हैं। नियाजी, पाकिस्तान को उसकी हार का अहसास कराता है। सन् 1971 में पाकिस्तान को भारत के खिलाफ जंग में सरेंडर करना पड़ा था। उस समय लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी को 90,000 सैनिकों के साथ सरेंडर करना पड़ा था। उनके आत्मसमर्पण के बाद 'पूर्वी पाकिस्तान' पाकिस्तान से आजाद हो गया था। इसके बाद बांग्लादेश का गठन हुआ। पाकिस्तान में हार की जांच के लिए एक कमीशन बना था और इसमें जनरल नियाजी को दोषी ठहराया गया था। जनरल नियाजी ने कहा था कि वह फौज का एक छोटा सा हिस्सा थे और इसलिए ही उन्होंने यह फैसला लिया था। युद्ध बंदी थे जनरल नियाजी ले. जनरल आमीर अब्दुला खान नियाजी या जनरल नियाजी ने वही 'इंस्ट्रूमेंट ऑफ सरेंडर' साइन किया था जिसके बाद भारत ने पाकिस्तान पर जीत का ऐलान कर दिया था। जनरल नियाजी को भारत ने युद्ध बंदी बना लिया था। हालांकि उन्हें कुछ दिनों बाद रिहा भी कर दिया गया था। युद्ध के बाद जनरल नियाजी को पाकिस्तानी सेना से हटा दिया गया। उन्हें सभी फायदे और पेंशन भी नहीं दी गई। इसके बाद से नियाजी शब्द हार का प्रतीक बन गया था। साल 2004 में जनरल नियाजी का निधन हो गया था। लेकिन उनके करीबी मानते हैं जनरल नियाजी एक बहादुर सैनिक थे। उन्होंने अपने साथियों की जान बचाने के लिए वह फैसला लिया था।
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