क्या यूपी की राजनीति में एक ध्रुव पर आ सकती हैं मायावती और कांग्रेस? नए साल में बदलेगा राजनीतिक समीकरण
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा बदलाव होता दिख रहा है। बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस एक धुरी पर आती हुई दिख रही है। इस मुद्दे पर चर्चा की बड़ी वजह जौनपुर से बसपा सांसद श्याम सिंह यादव का कांग्रेस के भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होना है। श्याम सिंह यादव भले ही कह रहे हैं कि उनका राहुल गांधी की ओर से निकाली जा रही भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होना व्यक्तिगत निर्णय था। वे राहुल गांधी के भारत जोड़ो यात्रा की नीति और नीयत से प्रभावित होकर इसमें शामिल हुए। लेकिन, राजनीतिक जानकार 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एक बड़ा राजनीतिक बदलाव के रूप में इसे देख रहे हैं। श्याम सिंह यादव पहले से बसपा और कांग्रेस गठबंधन की बात करते रहे हैं। संकेत दिया है कि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियों का गठबंधन हो सकता है। हालांकि, बसपा प्रमुख मायावती की ओर से कोई संकेत अभी तक नहीं आया है। नया साल यूपी में नए गठबंधन की उम्मीद और विपक्षी दलों के लिए कुछ नए सपनों के साथ आ रहा है। ताजा संकेत निश्चित तौर पर प्रदेश के राजनीतिक माहौल को गरमाने वाले हैं। बसपा अध्यक्ष मायावती पहले भाजपा और कांग्रेस दोनों पर समान रूप से आक्रामक रही हैं। लेकिन, तमाम गिले-शिकवों को भुलाकर आगे बढ़ती दिख सकती हैं। मायावती की कोशिश अखिलेश यादव को विपक्ष का चेहरा से हटाकर प्रदेश स्तर पर भाजपा के मुकाबले में खुद को खड़ा दिखाने का है। ऐसे में इस प्रकार की चर्चाओं को एक बड़े वोट बैंक को एकजुट करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। अगर निकाय चुनाव में बसपा की रणनीति काम कर गई तो 2024 के लिए राह खुल जाएगी।
क्या 2009 दोहराने की कोशिश में है बसपा
बसपा के रुख में बदलाव का बड़ा कारण पिछले विधानसभा चुनाव रहे हैं। वर्ष 2007 में बहुजन से सर्वजन तक का सफर तय करने वाली मायावती ने बसपा को प्रदेश की सत्ता में पूर्ण बहुमत दिला दी। तब बसपा के दलित, ओबीसी, मुस्लिम समीकरण के साथ ब्राह्मण वोट बैंक साथ आया। लेकिन, सरकार बनने के बाद ब्राह्मणों की उपेक्षा शुरू हुई। परिणाम 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा को घाटे के रूप में झेलना पड़ा। 2009 के लोकसभा चुनाव में यूपी की राजनीति में कांग्रेस करीब दो दशक बाद उभरी थी। केंद्र में मनमोहन सरकार की वापसी की राह यूपी से निकली। उस समय कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन की बातचीत चल रही थी। लेकिन, सपा ने कांग्रेस को 13 सीटों का ऑफर दिया। पार्टी ने अकेले लड़ने का फैसला किया। 18.2 फीसदी वोट शेयर के साथ कांग्रेस पार्टी ने 21 सीटों पर जीत दर्ज की थी। यूपी चुनाव 2007 में कांग्रेस को 19 फीसदी ब्राह्मण वोट बैंक गए थे। महज दो साल बाद हुए चुनाव में पार्टी ने 31 फीसदी ब्राह्मण वोट हासिल किया। इस चुनाव में सपा को 23 और भाजपा को 10 सीटों पर जीत मिली थी। सत्ताधारी मायावती की पार्टी बसपा 20 सीटों पर जीत दर्ज कर तीसरे स्थान पर रही थी। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि बसपा 2009 के परिणाम और तत्कालीन सामाजिक समीकरणों को साधने की कोशिश करती दिख सकती है।चुनाव दर चुनाव घटता बसपा का दायरा
5 साल बाद यानी 2014 के चुनाव में बसपा का वोट बैंक सिकुड़ा और पार्टी राज्य की सत्ता वर्ष 2012 में गंवाने के बाद लोकसभा से साफ हो गई। मायावती ने इस चुनाव में पूरा जोर लगाया। लेकिन, भाजपा के ब्रांड मोदी के आगे न मायावती टिकीं और न ही सत्ताधारी समाजवादी पार्टी। इस चुनाव में भाजपा गठबंधन यानी एनडीए ने 73 सीटों पर जीत दर्ज की। 5 सीटें सपा और 2 सीटें बसपा के पाले में गई। बसपा खाता भी नहीं खोल पाई। पार्टी चुनाव में 19.60 फीसदी वोट ही मिले। 22 से 25 फीसदी वोट बैंक की राजनीति करने वाली मायावती का आधार वोट खिसका। इसके बाद से बसपा संभल नहीं पाई है। स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेताओं ने भाजपा का दामन थामा तो ओबीसी वोट बैंक मजबूती के साथ भाजपा से जुड़ गया। भाजपा में गए तो दलित और अति पिछड़े वर्ग के वोटरों को एक नया ठिकाना दिखा। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में इसका असर दिखा। बसपा को 22.24 फीसदी वोट तो मिले, लेकिन पार्टी सिर्फ 19 सीटों पर सिमट गई। इसके बाद एक बार फिर 26 साल बाद सपा और बसपा का गठबंधन हुआ। यूपी की राजनीति में कल्याण सिंह और राम मंदिर मुद्दे की हवा निकालने वाली मुलायम सिंह यादव और काशीराम की जोड़ी की दोनों पार्टियां एक घुरी पर आईं। 2019 के चुनाव में इसका असर दिखा। 2014 के लोकसभा चुनाव में 71 सीट जीतने वाली भाजपा 62 सीटों पर आई। एनडीए ने कुल 64 सीटें जीतीं। यानी, 5 साल में 9 सीटों का नुकसान। फायदे में मायावती की बसपा रही। पार्टी ने सपा से गठबंधन का फायदा उठाते हुए 10 सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं, सपा 5 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई। कांग्रेस घटकर एक सीट पर पहुंच गई। वर्ष 2019 के चुनाव में बसपा का वोट शेयर सपा से गठबंधन के बाद भी 19.3 फीसदी रहा। सपा 18 फीसदी वोट शेयर के साथ तीसरे स्थान पर रही। कांग्रेस 6.31 फीसदी वोट शेयर ही हासिल कर पाई। भाजपा ने 49.6 फीसदी वोट शेयर के साथ प्रदेश की राजनीति पर अपना दबदबा दिखाया। यूपी चुनाव 2022 भी कांग्रेस और बसपा के लिए मुश्किलों भरा रहा है। उत्तर प्रदेश में चार बार सरकार बनाने वाली बसपा केवल 12.88 फीसदी वोट ही हासिल कर पाई। पार्टी को केवल एक सीट पर जीत मिली। विधानसभा में विलुप्त होने से तो पार्टी बच गई, लेकिन आधार वोट ही खो दिया। भाजपा ने एक बार फिर सभी दलों को पछाड़ा। पार्टी ने 41.76 फीसदी वोट शेयर हासिल किया। वहीं, सपा 32.02 फीसदी वोट शेयर के साथ दूसरे स्थान पर रही। वहीं, कांग्रेस 2.4 फीसदी वोट शेयर हासिल कर पाई। कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में 2 सीटों पर जीत मिली।बसपा गठबंधन के सहारे हो सकती है मजबूत
बहुजन समाज पार्टी लोकसभा चुनाव 2024 में पांच साल पहले के रिजल्ट को सुधारने की कोशिश करती दिख रही है। इसके लिए मायावती लगातार जिला स्तर के कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर रही हैं। एक बार फिर दलित, ओबीसी, मुस्लिम समीकरण को साधने की कोशिश है। बसपा का मास्टरप्लान रेडी है। मायावती की हरी झंडी मिल चुकी है। इमरान मसूद जैसे पश्चिमी यूपी के कद्दावर नेताओं को पार्टी ने जोड़कर अपनी रणनीति साफ कर दी है। हालांकि, मायावती को एक ऐसे साथी की जरूरत है, जो वोट बैंक को उनकी तरफ ट्रांसफर कराए। कांग्रेस यूपी में ब्राह्मण, ओबीसी और मुस्लिम वोट बैंक पर अपनी पकड़ रखती थी। इनके सहारे सत्ता की सीढ़ी चढ़ने की कोशिश करती थी। मायावती ने बहुजन वोट बैंक पर फोकस किया है। ऐसे में वह कांग्रेस के सहारे सवर्ण वोट बैंक को साधने की कोशिश कर सकती है। इन वोटों को गठबंधन के सहारे एक-दूसरे को ट्रांसफर कराने का प्रयास होगा। बसपा सांसद की राहुल गांधी की यात्रा में शामिल होने के बाद जिस प्रकार के कयास लग रहे हैं, उससे साफ है कि यूपी की राजनीति में दोनों राजनीतिक अकेले प्रभाव खो रहे हैं। विपक्ष की राजनीति का चेहरा अभी समाजवादी पार्टी बन गई है। उस मोमेंटम को यूपी निकाय चुनाव से बदलने की कोशिश है। अगर इस प्रकार की चर्चाओं का निकाय चुनाव के परिणाम पर असर दिखता है, तो निश्चित तौर पर सपा इसे अगले लोकसभा चुनाव के मैदान में आजमा सकती है।from https://navbharattimes.indiatimes.com/metro/lucknow/politics/can-alliance-between-congress-and-bsp-before-2024-loksabha-election-what-is-mayawati-plan/articleshow/96500105.cms