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गहलोत बार-बार उदयपुर क्यों आ रहे हैं? चुनाव से पहले समझिए कांग्रेस का सियासी गणित

उदयपुर: कहते है कि जिसने मेवाड जीत लिया। उसकी राजस्थान में सरकार बन गई। हालांकि कि यह मिथक पिछली बार टूट गया और उदयपुर की आठ विधानसभा सीटों में से 6 पर भाजपा के विधायक जीतने के बाद भी प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन गई थी। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत नहीं चाहते कि एक बार फिर उदयपुर में कांग्रेस को अपनी मुंह की खानी पड़े। इसके लिए गहलोत का मेवाड पर पूरा फोकस है। उदयपुर के आदिवासी अचंल कोटडा और झाडोल के बाद अब गहलोत मावली विधानसभा में राहत कैंप का निरीक्षण करेंगे। इससे पहले गहलोत कोटडा में अपना जन्मदिन मनाया था। उस दिन भी कोटडा और झाडोल के साथ-साथ उदयपुर शहर विधानसभा के वोटर्स को साधने के लिए नगर निगम के सुखाडिया रंगमंच पर भव्य कार्यक्रम किया गया था।

गहलोत का फोकस आखिरकार मेवाड पर क्यों ?

करीब दो दशक पहले मेवाड में कांग्रेस का बोलबाला था और यहां से मोहनलाल सुखाडिया विधायक बनने के बाद मुख्यमंत्री भी बने थे जिन्होंने 17 साल तक मुख्यमंत्री का पद संभाला लेकिन उसके बाद कांग्रेस में बिखराव आ गया और इसके चलते यहां पर गुटबाजी हावी हो गई। ऐसे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एक बार फिर यहां पर पार्टी को मजबूत करने की दिशा में बार—बार दौरे कर रहे है। कारण कोई भी रहा हो लेकिन गहलोत एक भी मौका नहीं छोडते है उदयपुर आने का। इसलिए गहलोत ने आदिवासी अंचल कोटडा में जन्मदिन मनाकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि मेवाड के विकास में कांग्रेस कोई कमी नहीं आने देगी बस जरूरत है तो यहां पर एकजुट होकर पार्टी को मजबूत करने की और विधानसभा चुनाव में पार्टी के प्रत्याशी को जीताने की। कई न कई गहलोत उस मिथक को मानते है कि मेवाड को जीतने वाला ही प्रदेश में सरकार बनाता है।

आदिवासी वोट बैंक को फिर कांग्रेस खेमे की और लाना चाहते है गहलोत

आदिवासी समाज को कांग्रेस का पक्का वोट बैंक माना जाता है लेकिन पिछले दो चुनाव में जिस तरह से आदिवासी वोट बैंक भाजपा की और डायवर्ट हुआ है। उससे पार्टी को बहुत नुकसान हुआ है। ऐसे में गहलोत किसी ने किसी माध्यम से आदिवासी वोट को फिर से कांग्रेस की और लाना चाहते है। इसलिए गहलोत बार-बार उदयपुर के दौरे कर पार्टी के नेताओं को एकजुट रहने का संदेश दे रहे है।

यू समझें उदयपुर के आठो विधानसभाओं की गणित

सबसे पहले उदयपुर शहर विधानसभा सीट की तो यहां पर भाजपा का राज रहा है। यहां से लगातार गुलाबचंद कटारिया तीन बार विधायक रहते हुए भाजपा की सरकार में गृहमंत्री और कांग्रेस की सरकार में नेता प्रतिपक्ष के पद रहे है। हांलाकि उनके असम के राज्यपाल बनने के बाद अभी यह सीट खाली है। इससे कांग्रेस हो या भाजपा दोनों पार्टियों के विधायक के टिकिट की लम्बी लिस्ट बन चुकी है। दोनों ही पार्टियों में बाहरी नेता के चुनाव लडने का डर भी सता रहा है। इसके बाद उदयपुर ग्रामीण विधानसभा सीट की बात करे तो पिछले दो चुनाव में भाजपा के फूल सिंह मीणा ने यहां से जीतते आए है। हांलाकि इससे पहले यहां पर कांग्रेस के दिग्गज नेता खेमराज कटारा के परिवार का राज रहा था लेकिन दो चुनाव में यहां पर कांग्रेस को अपने मुंह की खानी पडी थी। इसी तरह सलूम्बर और गोगुंदा में भी पिछले दो चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी ही चुनाव जीत कर विधानसभा में पहुंचे है। इसके अलावा उदयपुर की सबसे हॉट सीट मानी है वल्लभनगर विधानसभा सीट को। यहां से अंतिम चुनाव गजेन्द्र सिंह शक्तावत जीते थे जो कि सचिन पायलट के खास थे लेकिन उनके निधन के बाद उपचुनाव में उनकी पत्नी को टिकिट मिला वह विधायक बन गयी। खेरवाडा विधानसभा सीट पर पिछले लम्बे समय से एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा जीतती आई है। झाडोल विधानसभा सीट पर भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला है।


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