हादसे घटे हैं लेकिन यह घटना दुर्लभ... ओडिशा ट्रेन एक्सीडेंट पर जानकारों ने कही बड़ी बात
भुवनेश्वर\नई दिल्ली: ओडिशा के बालासोर में हुए रेल हादसे (Odisha Train Tragedy) ने देश को झकझोर कर रख दिया है। मृतकों की संख्या से रेलवे में सुरक्षा-व्यवस्था और इसके इन्फ्रास्ट्रक्चर पर सवाल उठने लगे हैं। एनबीटी ने रेलवे से जुड़े कुछ विशेषज्ञों से बात की। इनका मानना है कि रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था, इसका इन्फ्रास्ट्रक्चर मसलन पटरियां, डिब्बों का रखरखाव, सिग्नल सिस्टम और क्रॉसिंग पर काफी काम हुआ है। इनमें तकनीकी अपग्रेडेशन और पर्याप्त निवेश से स्थितियां सुधरी हैं, जिसका असर एक दशक में देश में लगातार कम होते हादसों के रूप में नजर आ रहा है।‘जांच बताएगी गलती इंसानी थी या तकनीकी’वीनू माथुर, रेलवे बोर्ड के भूतपूर्व सदस्य (ट्रैफिक) ने बताया कि हादसे के बारे में जो शुरुआती जानकारी आई है, उसमें कहा जा रहा है कि एक लाइन का सिग्नल हो चुका था, जिसे बाद में वापस ले लिया गया और उसे किसी दूसरी लाइन के लिए सेट कर दिया गया। इससे कोरोमंडल ट्रेन, बेंगलुरु-हावड़ा एक्सप्रेस और मालगाड़ी, इन तीन के बीच हादसा हुआ। हालांकि बीते कुछ वर्षों में अपने यहां रेल हादसों में काफी कमी आई है। बीते 10 सालों में रेल हादसों की संख्या काफी कम वीनू माथुर, रेलवे बोर्ड के भूतपूर्व सदस्य (ट्रैफिक) ने बताया कि रेल हादसे के अंतरराष्ट्रीय पैमाने के आधार पर देखें तो 10 वर्षों रेल हादसों की संख्या काफी कम हुई है। इस पैमाने में प्रति 10 लाख किलोमीटर में ट्रेन हादसे गिने जाते हैं। अपने यहां रेल सुरक्षा पर काफी काम हो रहा है, उसका असर भी जमीन पर दिखने लगा है। कवच भी ऐसा ही ऐहतियाती कदम है, जो कुछ समय पहले ही लागू हुआ है। रेलवे ने बहुत सारी सावधानियां बरती हैं, खासकर सिग्ननलिंग सिस्टम में जो आधुनिकीकरण हुआ है, उसकी वजह से रेल हादसों में कमी आई है। 'काफी दिनों बाद हुई यह भीषण रेल दुर्घटना'माथुर ने कहा कि काफी दिनों बाद यह भीषण रेल दुर्घटना हुई है, जो बहुत अफसोसनाक है। इसकी असल वजह तो जांच में सामने आ पाएगी। इस ट्रेन रूट में कवच नहीं था, अगर होता तो शायद हादसा ना होता। यह अपने आप में दुर्लभ मामला है, जिस की सही तस्वीर जांच के बाद ही सामने आ पाएगी कि यह इंसानी गलती थी या फिर कोई तकनीकी वजह।‘हादसे की न्यायिक जांच बेहतर रहेगी’सुधांशु मणि, भारतीय रेलवे के पूर्व जीएम ने बताया कि रेल हादसे को लेकर दो बातें आ रही हैं। पहला- एक ट्रेन आ रही थी, जो किसी वजह से पटरी से उतर गई, पर अगर सिर्फ बोगियां पटरी से उतरतीं तो खास नुकसान नहीं होता। क्योंकि सभी कोच एनएसबी हैं, जो आसानी से नहीं पलटते। लेकिन जैसे ही पहली ट्रेन पटरी से उतरी तो सामने से कोरोमंडल आई। इनमें टक्कर हुई, जिससे कोरोमंडल की 12 से 14 बोगियां पटरी से उतरीं। दूसरी ट्रेन के सिर्फ दो ही कोच प्रभावित हुए।'सिग्नलिंग या ड्राइवर की गलती नहीं लगती'सुधांशु मणि ने बताया कि दूसरी बात जो आ रही है- कोरोमंडल मेन लाइन पर जानी थी, लेकिन सिग्नल फेलियर या किसी और कारण से निर्धारित रूट से हटकर दूसरे रूट पर चली गई, जहां पहले से मालगाड़ी खड़ी थी, उससे भीषण टक्कर हुई और उसी वक्त दूसरी ट्रेन आई और पटरी से उतरी बोगियां उससे टकरा गईं। पहले वर्जन में सिग्नलिंग या ड्राइवर की गलती नहीं लगती, उसमें ट्रैक से जुड़ी, बोगियों से जुड़ी कोई वजह है या कोई साजिश हो सकती है। दूसरे वर्जन में इंसानी गलती की संभावना हो सकती है। 'काफी जटिल और दुर्लभ हादसा'सुधांशु मणि ने बताया कि यह काफी जटिल और दुर्लभ हादसा है। हमें किसी भी नतीजे पर पहुंचने के बजाय जांच रिपोर्ट का इंतजार करना चाहिए। कमिश्नर ऑफ रेलवे सेफ्टी से जांच की बात कही जा रही है। लेकिन वह रेलवे के ही पुराने अधिकारी होते हैं। ऐसे में हो सकता है कि लोगों को उस जांच पर पूरा भरोसा न हो। मेरा मानना है कि जुडिशल जांच होनी चाहिए।
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