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बोफोर्स के अलावा M-777, K9 वज्र और धनुष भी बढ़ाएगी सेना की ताकत, चीन और पाकिस्तान की उड़ जाएगी नींद

नई दिल्ली: द्रास में करगिल वॉर मेमोरियल में एंट्री करते ही सामने दाहिनी तरफ बोफोर्स तोप नजर आती है और इसके पीछे हैं ऊंची चोटियां। 1999 की जंग में इन चोटियों से दुश्मन को खदेड़ने के लिए बोफोर्स का खूब इस्तेमाल किया गया था और भारत की जीत में बोफोर्स ने अहम भूमिका निभाई थी। इसलिए करगिल जंग के बारे में कोई बात बोफोर्स के जिक्र के बिना अधूरी है। तब बोफोर्स से इतने गोले दागे गए कि उसके बैरल का डायमीटर ही बदलने लगा। इसलिए बोफोर्स तोप के साथ ही इसके बैरल बड़ी संख्या में करगिल पहुंचाए गए। कई बार इन तोपों के बैरल को बदला गया। दरअसल जब लगातार ज्यादा गोले दागे जाते हैं तो बैरल गरम होता है और उसके अंदर का ढांचा बदलने लगता है जिससे गोले दागने की सटीकता कम हो जाती है।करगिल युद्ध के बाद सेना का आधुनिकीकरण करने की दिशा में कदम बढ़ाए गए। सेना की आर्टिलरी यानी तोपखाने को और मजबूत किया गया और स्वदेशी तोपों को भी सेना में शामिल किया गया। भारतीय सेना के पास अब 155 Mm अल्ट्रा लाइट हॉवित्जर M-777 गन भी हैं। इसकी खास बात ये है कि ये इतनी हल्की है कि हेलिकॉप्टर के जरिए हाई ऑल्टिट्यूट इलाके में पहुंचाया जा सकता है। भारत ने अमेरिका से 145 तोपों का करार किया था और सभी तोपें भारतीय सेना को मिल चुकी है। इसे लद्दाख के साथ साथ ईस्टर्न सेक्टर में LAC पर भी तैनात किया जा चुका है। 100 K-9 वज्र भी भारतीय सेना में शामिल की जा चुकी है, ईस्टर्न लद्दाख में चार साल पहले बोफोर्स के साथ साथ M-777 अल्ट्रा लाइट हॉवित्जर और K-9 वज्र भी तैनात किया गया। स्वदेशी गन धनुष भी भारतीय सेना में शामिल किया जा चुका है।

तोपखाने की ताकत बढ़ाने के लिए तेजी से काम

भारतीय सेना अपने तोपखाने (आर्टिलरी) की ताकत बढ़ाने के लिए तेजी से काम कर रही है। टारगेट है कि साल 2040 तक सभी तोपें 155 एमएम कैलिबर की होंगी। अभी 105 और 130 एमएम की तोपें (आर्टिलरी गन) भी हैं। ज्यादा कैलिबर मतलब ज्यादा घातक। रूस-यूक्रेन युद्ध ने भी दिखाया है कि किसी भी युद्ध में बढ़त हासिल करने के लिए फायरपावर बड़ा फैक्टर है। इसमें ज्यादा कैजुवल्टी आर्टिलरी फायर की वजह से हुई हैं। भारतीय सेना ने पिछले साल ही 155 एमएम आर्टिलरी गन के चार अलग अलग कॉन्ट्रैक्ट साइन किए हैं। साथ ही माउंटेड गन सिस्टम और सेल्फ प्रोपेल्ड सिस्टम की संख्या बढ़ाई जा रही है। सेल्फ प्रोपेल्ड गन यानी इसे ढोने के लिए किसी दूसरे वाहन की जरूरत नहीं पड़ती। यह खुद एक जगह से दूसरी जगह जा सकती है।

तोपखाने में अभी 105 एमएम कैलिबर की फील्ड गन

सेना के एक अधिकारी ने कहा कि तोपखाने में अभी 105 एमएम कैलिबर की फील्ड गन भी हैं जिन्हें फेज आउट करने की तैयारी है। कुछ गन 130 एमएम की भी हैं। अब दुनिया भर में 155 एमएम कैलिबर की आर्टिलरी गन ही बन रही हैं। भारतीय सेना भी अपने तोपखाने का मॉर्डनाइजेशन कर रही है। सभी तोप 155 एमएम की होने से सब में एक जैसे गोले का इस्तेमाल किया जा सकेगा जिससे गोलाबारूद स्टोर करना और मैनेज करना भी आसान होगा। साथ ही अगर एक ही कैलिबर की गन इस्तेमाल होगी तो सेना को इसमें विशेषज्ञता भी हासिल होगी।

धनुष तोप दूर तक कर सकती है मार

सेना को 114 धनुष गन की भी 6 रेजिमेंट मिलनी हैं। जिसमें एक रेजिमेंट दो साल पहले ही तैयार हो गई है। धनुष से लैस बाकी पांच रेजिमेंट भी साल 2026 तक तैयार हो जाने की उम्मीद है। धनुष तोप दूर तक मार कर सकती है और मुश्किल से मुश्किल रास्तों पर भी आसानी से चल सकती है। ऑटोमेटेड टेक्नॉलजी के जरिए एक साथ एक टारगेट पर तीन से छह गन फायर कर सकती है। गन का वजन 13 टन से कम है जिससे इसे पहाड़ी और दूर के एरिया में ले जाना आसान होता है। साथ ही सेना 100 और K9बज्र भी ले रही है जिसका कॉन्ट्रैक्ट साइन हुआ है। आर्टिलरी की SATA रेजिमेंट (Surveillance and Target Acquisition) के लिए कई तरह के ड्रोन भी लिए गए हैं और अभी और ड्रोन लिए जाने हैं। इमरजेंसी खरीद में स्वॉर्म ड्रोन लिए गए और अब ज्यादा संख्या में इन्हें लेने की प्रक्रिया चल रही है। आर्टिलरी के लिए टेक्टिकल यूएवी तो ले ही रहे हैं साथ ही ऑबजर्वेशन पोस्ट (ओपी) ऑफिसर के लिए मिनी ड्रोन भी लिए जा रहे हैं ताकि भारतीय तोपों का फायर का डायरेक्शन और सटीक हो सके।


from https://navbharattimes.indiatimes.com/india/kargil-vijay-diwas-now-m777-k9-vajra-and-dhanush-also-to-support-bofors/articleshow/112070654.cms
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