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निजी सुरक्षागार्डों के लिए सात साल से नहीं बदला टेंडर, एक ही कंपनी की बढ़ाई जा रही समय सीमा

(तोषी शर्मा) दिल्ली स्थित केंद्र सरकार के सबसे बड़े अस्पताल सफदरजंग में मेडिकल सुपरिडेंट की नियम विरुद्ध नियुक्ति के खुलासे के बाद एक और नया मामला सामने आया है। ये मामला अस्पताल में सुरक्षा गार्ड मुहैया करवाने वाली कंपनी के अस्पताल प्रबंधन के साथ मिलकर सरकार को चुना लगाने से जुड़ा है। विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक अस्पताल में सुरक्षा गार्ड रखने के लिए पिछले सात साल यानी 10 अक्टूबर 2013 के बाद से कोई टेंडर ही नहीं निकाला गया है।
10 अक्टूबर 2013 में ट्रिग कंपनी को अस्पताल को सुरक्षा गार्ड मुहैया करवाने का ठेका दिया गया था। उसके बाद लगातार उसी कंपनी का वर्क एक्सटेंड किया जा रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि इस कंपनी को लगातार बिना नया टेंडर जारी किए कैसे सेवाएं बढ़ाई जा रही है। दूसरी और अस्पताल के विश्वसनीय सूत्रों की माने तो अस्पताल प्रबंधन के कुछ अफसरों, सुरक्षा अधिकारी की मिलीभगत से एक ही कंपनी का ठेका अभी तक चल रहा है। सूत्रों की माने तो सुरक्षा गार्ड सेवा प्रदाता कंपनी से अस्पताल के कुछ अफसर वसूली भी करते हैं। इससे जुड़ा एक ऑडियो भास्कर के हाथ लगा है।
सुरक्षा अधिकारी के दोनों बेटे कागजों में कर रहे हैं ड्यूटी
सफदरजंग अस्पताल में ट्रिग कंपनी के करीब 1172 कर्मचारी काम कर रहे हैं। जिनमें सुरक्षागार्ड, सुपरवाइजर, मैनेजर और बाउंसर शामिल है। जो अस्पताल में तीन शिफ्टों में काम करते हैं। ये गार्ड अस्पताल के सुरक्षा अधिकारी प्रेम कुमार के सुपरविजन में काम करते हैं। सुरक्षा गार्ड ने बताया कि सुरक्षा अधिकारी प्रेम कुमार के दोनों बेटे प्रशांत और आकाश ड्यूटी पर नहीं आने के बावजूद हाजिरी लगाकर वेतन उठाया जा रहा हैं।
विश्वसनीय सूत्रों की माने तो सुरक्षा गार्ड की सेवा दे रही कंपनी में अस्पताल के सुरक्षा अधिकारी प्रेम कुमार के दोनों बेटे अस्पताल में ड्यूटी पर आने के बजाय कागजों ने ही ड्यूटी कर रहे हैं। सफदरजंग अस्पताल के विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक सुरक्षा अधिकारी प्रेम कुमार तीन बार सस्पेंड हो चुके हैं। दूसरी ओर सुरक्षा कंपनी में कार्यरत एक सुरक्षा गार्ड ने बताया कि सफदरजंग अस्पताल के जोन-1 और जोन-2 में 10 अक्टूबर 2013 के बाद रीटेंडर नहीं हुआ है। बीच में एक दो बार टेंडर निकाले गए थे। लेकिन ऑब्जेक्शन लगने के बाद कैंसिल हो गए थे।
ऐसे समझिए अस्पताल के गार्ड ड्यूटी का गणित
सफदरजंग अस्पताल को जोन-1, जोन-2 और एनईबी यानी न्यू इमरजेंसी ब्लाक में बांट कर सुरक्षा गार्डों को लगाया गया है। जोन-1 में गायनि, एच ब्लॉक, सर्जरी, ऑर्थोपेडिक, गेट 1 से लेकर गेट 7 और अकाउंट एरिया शामिल है। वहीं जोन-2 में ओपीडी, कॉलेज बिल्डिंग, सभी हॉस्टल्स शामिल है। इन दो जोन की सुरक्षा के लिए लगे सुरक्षा गार्डों के लिए साल 2013 में टेंडर किया गया था। जिसके बाद लगातार टेंडर की समय सीमा बढ़ाई जा रही है। इसके बाद कब टेंडर किया गया इस बारे में अस्पताल की आधिकारिक वेबसाइट पर भी कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।
एनईबी के लिए टेंडर भी जनवरी 2020 में पूरा हुआ
न्यू इमरजेंसी ब्लॉक की सुरक्षा के लिए सुरक्षा गार्ड रखने के लिए जनवरी 2018 में टेंडर हुआ था। जिसकी समय सीमा जनवरी 2020 में पूरी हो चुकी है। ऐसे में रीटेंडर करने के बजाय इसकी समय सीमा को बढ़ाया गया है। यही नहीं यहां तीन शिफ्टों में लगे गार्डों की ज्यादा संख्या बताकर सरकारी पैसा उठाया जा रहा है। सूत्रों की माने तो 70 से 80 ऐसे सुरक्षा गार्डों को रिकॉर्ड में दिखाकर पैसा उठाया जा रहा है। जिनके नाम फर्जी है और उनके पीपीएफ अकाउंट ही नहीं है। हालांकि भास्कर इन आरोपों की पुष्टि नहीं करता है।
ये होते हैं सरकारी टेंडर प्रक्रिया के नियम
विशेषज्ञों के मुताबिक कोई भी सरकारी विभाग फिक्स कॉस्ट वाइज और सर्विस चार्ज वाइज दो तरह से निविदा जारी करती है। फिक्स कॉस्ट वाइज टेंडर सर्विस प्रोवाइडर एजेंसी को सेवाओं के बदले फिक्स अमाउंट का भुगतान किया जाता है। जबकि सर्विस चार्ज वाइज प्रक्रिया में सर्विस प्रोवाइडर एजेंसी को सेवा के बदले उसे कमीशन का भुगतान किया जाता है।
इस बारें में मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है, आपको अगर जानकारी चाहिए तो आप आरटीआई के जरिए जानकारी ले सकते हैं।
एसएनजी मोहेला ए, डीडीए, सफदरजंग अस्पताल



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सफदरजंग अस्पताल में पुलिस के साथ तैनात ट्रीग कंपनी के सुरक्षागार्ड। फाइल फोटो


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