400 से अधिक भिखारियों को सिखा दिया सिर ऊंचा करके जीना, लखनऊ के रिसर्च स्कॉलर ने कर दिया कमाल
लखनऊ: 44 साल की माया लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन पर खम्मन पीर बाबा मजार के बाहर भीख मांगा करती थी। वह 8 महीने की गर्भवती थी, जब एक रात फुटपाथ पर सोने के दौरान एक गाड़ी उनके ऊपर चढ़ गई। तभी से उनका कमर से नीचे का हिस्सा पैरालाइज हो गया था। लेकिन जीवन में आए एक बदलाव से पूरी दुनिया ही बदल गई। माया और करीब 430 से अधिक ऐसे भिखारी हैं जो 33 साल के शरद पटेल के शुक्रगुजार हैं। शरद रिसर्च स्कॉलर है और सड़कों पर भीख मांग रहे लोगों के जीवन में बदलाव के साथ ही उन्हें सम्मान के साथ अपने पैरों पर खड़ा होकर जीवन जीना सिखाते हैं। शरद की वजह से ही माया आज मोबाइल की दुकान चलाती हैं। वहां पर माया मास्क और पानी की बॉटल भी बेचती हैं। उनके प्रति दिन की कमाई 500 रुपये है। उन्होंने किराए पर एक रूम ले रखा है। उनकी बिटिया स्कूल जाती है और बेटा एक गोदाम में काम करता है। उनके जैसे ही अन्य लोग भी हैं, जिनमें रिक्शा चलाने वाले, सब्जी बेचने वाले, सड़कों पर ठेले लगाने वाले लोग भी हैं, जिनकी जिंदगी में शरद ने बदलाव ला दिया है। शरद ने सोच से भी परे जाते हुए लाजवाब काम किया। वह लखनऊ में अभी तक 430 से अधिक भिखारियों को नया जीवन दे चुके हैं, जिनमें से 335 आय के स्रोत के साथ सम्मानित जीवन जी रहे हैं। शरद इसके बाद सड़कों पर भीख मांगने वाले बच्चों के लिए भी कुछ इसी तरह की योजना पर काम करने की तैयारी में लगे हुए हैं। उन्होंने अपने दोस्त जगदीप रावत और महेंद्र प्रताप के साथ मिलकर 2014 अक्टूबर में भिक्षावृत्ति मुक्ति अभियान की शुरुआत की, जो कि सितंबर 2015 में बदलाव के तौर पर रजिस्टर हो गया। शरद बताते हैं कि ब्लड कैंसर से जूझ रही मां के इलाज के लिए उनका परिवार साल 2003 में हरदोई से लखनऊ आ गया था। उस समय वह 11वीं क्लास के छात्र थे। शरद उस समय जब कभी मंदिरों और मजारों की तरफ जाते तो बाहर भिखारियों की लाइन लगा हुआ देखते थे। लेकिन वह जब कभी गुरुद्वारा जाते तो नजारा बदला हुआ रहता। वहां पर लंगर का खाना सभी को खिलाया जाता और कोई भी भिखारी बाहर नहीं रहता था। बस यहीं से कम्युनिटी किचन का आइडिया उन्हें भा गया। शरद बताते हैं कि लखनऊ में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के दौरान एक युवा लड़के ने उनसे खाने के लिए 10 रुपये की मांग की। लेकिन उसको पैसे देने की बजाय शरद उसे पास में ही पूरी सब्जी के ठेले पर ले गए, जिससे कि वह भरपेट खाना खा सके। लेकिन यह बात उनके दिमाग में घर कर गई और रिसर्च स्कॉलर शरद ने यह सोचना शुरू कर दिया कि वह भिखारियों के जीवन में परिवर्तन किस तरह से ला सकते हैं, जिससे कि वह भी मुख्यधारा का हिस्सा बन जाएं। इससे उनकी पूरी जिंदगी और सामाजिक सिस्टम में बदलाव आ सकता है। शरद ने यह बात अपने मेंटर और रमन मैग्सेसे अवार्ड विजेता संदीप पांडे के साथ भी शेयर की। शरद ने बताया, 'संदीप सर ने मुझसे यह पता करने के लिए कहा कि ऐसे लोगों के लिए क्या कोई सामाजिक योजना है। 2013-14 में आरटीआई दाखिल करने के बाद मुझे पता चला कि यूपी के 7 जिलों में भिखारियों के लिए शेल्टर होम की सुविधा है, जिसमें से एक लखनऊ में भी है। हालांकि सभी बंद हैं और उनका कोई उपयोग नहीं होता है। 2009 से ही लखनऊ में भिखारियों के लिए बने घर में कोई भी नहीं रहता। उससे पहले पुलिस भिखारियों को इस घर में डाल देती थी। लेकिन बिल्डिंग की खराब हालत और अन्य विभागीय विवादों की वजह से इसका प्रोग्रेस नहीं हो सका। 1975 की Beggary ऐक्ट के तहत उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ, कानपुर, प्रयागराज, फैजाबाद, आगरा, मथुरा, वाराणसी में भिखारियों के लिए शेल्टर होम बने हुए हैं। फैजाबाद में महिला भिखारियों के लिए एक अलग से घर भी बना है। इन सभी भवनों में रहने, खाने, स्वास्थ्य सुविधा के साथ काउंसलिंग भी की जाती है, जिससे कि भिखारियों को सड़क से हटाकर एक बेहतर जीवन की सुविधा दी जा सके। लखनऊ के ठाकुरगंज इलाके में भी इस उद्देश्य के लिए एक इमारत बनी हुई है। हालांकि 2014 में दायर की गई एक आरटीआई के मुताबिक यहां पर कोई भी नहीं रहता है। लेकिन गौर करने वाली बात यह भी है कि महीने का 3 लाख और सालाना करीब 40 लाख रुपया विभिन्न पदों पर कार्यरत राज्य कर्मचारियों पर खर्च होता है। शरद ने बताया 1975 में भिखारियों और भीख मांगने से जुड़े कानून के आने से पहले ही 1959 में लखनऊ में शेल्टर होम बना हुआ है। सामाजिक कल्याण विभाग ने शुरुआत में केवल उन भिखारियों को रहने की अनुमति दी, जिन्हें पुलिस ने पकड़ा था। हालांकि पिछले कई सालों के दौरान शेल्टर होम में एक भी कैदी नहीं रहता है और ऐसे लोगों को सड़क पर सोना पड़ता है। ऐसे में इस तरह के कानून का क्या फायदा जब इनका उपयोग ही ना हो पाए और किसी का जीवन बेहतर ना हो। साल 2017 में शरद में भिखारियों की एक ग्रुप के साथ लखनऊ के शेल्टर होम को बेहतर बनाने के लिए कैम्पेन लांच किया। हालांकि इससे कोई फायदा नहीं हुआ। शरद ने डोनेशन और कॉन्ट्रिब्यूशन से की मदद से हैप्पी होम नाम का एक अस्थायी शेल्टर तैयार किया। बाद में लखनऊ नगर निगम की तरफ से शरद को दो हॉल की एक बिल्डिंग मिल गई, जिसमें अभी 24 लोग रहते हैं। शरद ने बताया ऐसे भिखारी जो हमारे पास खुद आते हैं, उनके लिए हम 6 महीने का रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम चलाते हैं। हम उनके साथ एक नया संबंध बनाते हैं और उनमें व्यवहारिक बदलाव लाने की कोशिश करते हैं। हम उन्हें खाना मेडिकल ट्रीटमेंट रहने की सुविधा देते हैं, जो हमें क्राउडफंडिंग और डोनर्स से मिली होती है। हम बिहेवियर थेरेपी करते हैं और इन भिखारियों में छिपे हुए टैलेंट को तलाशने की कोशिश करते हैं। हम स्ट्रेटजी तैयार करके जीवन को बेहतर बनाने और आर्थिक मदद मुहैया कराने की कोशिश करते हैं। हमने 1300 से अधिक लोगों को सरकार के सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के साथ जोड़ा है और 300 से अधिक ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें उनके परिवार से वापस मिलाया गया है। अभी इस संगठन में 6 फुल टाइम वर्कर, 3 पार्ट टाइम लोग और 40 वॉलिंटियर्स जुड़े हुए हैं।
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