सचिन पायलट की सियासी बाजी, शिवराज जाएंगे या रहेंगे? सियासी गलियारों से 5 बड़े अपडेट पढ़िए
अब का कांग्रेस अध्यक्ष बनना लगभग तय माना जा रहा है तो सबसे बड़ा सवाल यह कि राजस्थान में उनकी जगह सीएम कौन बनेगा। इसके लिए स्वाभाविक पसंद हैं, जो राज्य में डिप्टी सीएम और प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं, लेकिन गहलोत इसके लिए तैयार नहीं दिख रहे थे। वह अपने दूसरे करीबी नेताओं का नाम सीएम पद के लिए आगे बढ़ा रहे थे। लेकिन केंद्रीय नेतृत्व भी सचिन पायलट को राजस्थान की कुर्सी सौंपने के हक में है। खुद पायलट भी गहलोत को मनाने की पूरी कोशिश करने में लगे हैं। उन्होंने अशोक गहलोत तक संदेश भिजवाया कि अगर वह उनके नाम पर सहमत होते हैं तो उन्हें किसी तरह की दिक्कत नहीं होगी बल्कि उनके करीबी लोगों का पूरा खयाल रखा जाएगा। सचिन पायलट ने यह संदेश भी भिजवाया कि अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को भी पूरी तरजीह दी जाएगी। दरअसल, अशोक गहलोत अपने बेटे को राजनीति में स्थापित करने में लगे हैं। यह बात और है कि लोकसभा चुनाव में अपनी सीट पर उनकी करारी हार हुई थी। इसके बावजूद सचिन पायलट ने उन्हें संदेश दिया कि अगर वह मुख्यमंत्री बनते हैं तो वैभव को खुद बड़ी जिम्मेदारी के लिए तैयार करवा देंगे। अब इस वादे का कितना असर अशोक गहलोत पर हुआ यह तो वक्त बताएगा। शिवराज जाएंगे या रहेंगेमध्य प्रदेश में को लेकर अक्सर कई खबरें आती रहती हैं। एक बार फिर से यह चर्चा उठी है कि उनके खिलाफ राज्य में एंटी-इनकंबेंसी हो सकती है। दरअसल बीजेपी ने खुद से इसके लिए जो आकलन किया है, उसमें पिछले डेढ़ दशक से सीएम पद पर काबिज शिवराज चौहान के प्रति राज्य में एंटी-इनकंबेंसी के लगातार बढ़ने की बात कही जा रही है। मतलब राज्य में लोग उनसे बहुत खुश नहीं हैं। से पहले बीजेपी किसी भी सूरत में इस राज्य को खोना नहीं चाहती। ऐसे में क्या चुनाव में शिवराज ही एक बार फिर बीजेपी का चेहरा बनेंगे या तब तक राज्य को नया सीएम मिलेगा? यह चर्चा इसलिए हो रही है कि बीजेपी हाल में राज्यों में सीएम को बदलने का प्रयोग कर चुकी है। लेकिन बात इतनी भर नहीं है। अगर चौहान को बदलने का मन पार्टी बनाती है तो उनके जगह कौन लेगा? बीजेपी के सामने यह चुनौती होगी। इस पद पर कम से कम चार लोगों की करीबी नजर है। इनमें किसी एक का चयन पार्टी के लिए टेढ़ी खीर हो सकता है। क्या यह दुविधा शिवराज सिंह चौहान के लिए संजीवनी का काम कर सकती है? विपक्षी दलों का गेमप्लानपिछले दिनों फिलिस्तीन के संसदीय लीग के डायरेक्टर जनरल मोहम्मद मकरम बलवी भारत के दौरे पर थे। उन्होंने इशारों-इशारों में जताया कि भारत की विदेश नीति इधर इस्राइल के पक्ष में अधिक झुक रही है। हुआ यूं कि उनके सम्मान में जेडीयू के सीनियर नेता केसी त्यागी ने दिल्ली में एक लंच का आयोजन रखा। इसमें भारत-फिलिस्तीन के संबंधों पर विस्तार से चर्चा हुई। लेकिन यह प्रोग्रैम विपक्षी एकता की कोशिशों का मंच भी बना। कई विपक्षी दलों के नेता भी शामिल हुए। इसमें सबसे दिलचस्प था समाजवादी पार्टी (एसपी) के जावेद अली खान और बीएसपी के कुंवर दानिश रिजवी का शामिल होना। आरजेडी नेता मनोज झा और कांग्रेस के मोहन प्रकाश, राजीव शुक्ला की भी शिरकत हुई। किसी ने वहां कहा कि 2024 से पहले एसपी-बीएसपी को एक करने की शुरुआत इसी मंच से शुरू हो गई। राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता की कोशिशों पर भी लंबी बातचीत हुई, जिसके प्रयास में इधर भी लगे हुए हैं। से उनकी मुलाकात हो चुकी है। सूत्रों के अनुसार, वह मायावती का भी मन टटोल रहे हैं। नीतीश को लगता है कि अगर मायावती भी साथ आ जाएं तो बिहार-उत्तर प्रदेश में बीजेपी के रथ को रोका जा सकता है। उनकी इस मुहिम में केसी त्यागी अहम भूमिका निभा रहे हैं, जो खुद उत्तर प्रदेश से हैं। उद्धव से दोस्ती?महाराष्ट्र में की शिवसेना को तोड़ने के बाद गुट वाली शिवसेना बीजेपी के साथ सरकार में है। इसके बाद उद्धव ठाकरे और बीजेपी के बीच तीखी बयानबाजी भी हुई। लेकिन पिछले कुछ दिनों से बीजेपी की ओर से इस तल्खी को कम करने की कोशिश हो रही है। पार्टी का मानना है कि अगर उद्धव गुट अलग रहा और 2024 में कांग्रेस, एनसीपी के साथ गठबंधन कर मैदान में उतरी तो उसकी मुश्किल बढ़ सकती है। इसलिए पार्टी दोनों गुटों में सुलह की संभावना से इंकार नहीं कर रही है। लेकिन जब एकनाथ शिंदे सीएम बन गए हैं तो समझौता कैसे होगा? इस पर बीजेपी नेता मानते हैं कि मुंबई से लेकर दिल्ली तक इतने पद हैं कि सभी को खुश करने का रास्ता निकालना आसान है। राहुल की अग्निपरीक्षा को मिले रेस्पॉन्स से अभी तक कांग्रेस खुश है। लेकिन जानकारों का कहना है कि असली रेस्पॉन्स 30 सितंबर से पता चलेगा। अब तक यात्रा तमिलनाडु से शुरू होकर केरल में घूम रही थी, जो कांग्रेस का मजबूत इलाका रहा है और वहां सामने मुख्य विरोधी लेफ्ट दल रहे हैं। इस बात को लेकर यात्रा के रूट पर सवाल भी उठे, लेकिन अब 30 सितंबर को यात्रा केरल से निकलकर कर्नाटक में प्रवेश करेगी, जहां मुख्य मुकाबला बीजेपी से है। राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव भी हैं। ऐसे में कर्नाटक में 13 दिनों की यात्रा को लेकर बड़ी उत्सुकता है। यहां भी कांग्रेस डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया गुट में बंटी है। दोनों गुट यात्रा के दौरान अपनी पूरी ताकत लगाने में जुटे हैं। माना जा रहा है कि अगर यात्रा के दौरान दोनों गुट को एक करने की कोशिश कर पाए और डीके और सिद्धारमैया दोनों उनके साथ इसमें शामिल हुए तो यह कांग्रेस के लिए राहत की बात होगी।
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