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समरकंद में नजर आएगी भारत की बदली हुई विदेश नीति, पीएम मोदी की 'सबका विकास' की मिलेगी झलक!

समरकंद: भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कुछ महीने पहले बयान दिया था कि अब कोई भी गुटनिरपेक्ष नीति नहीं है क्‍योंकि दुनिया में कोई दो महाशक्तियां नहीं बची हैं। उनके इस बयान ने भारत की बदली हुई विदेश नीति की झलक दिखाई थी। जयशंकर ने कहा था कि भारत कई देशों के साथ अच्‍छे रिश्‍ते चाहता है लेकिन वो एकपक्षीय नहीं होने चाहिए। जयशंकर की मानें तो भारत अब इतना सक्षम है कि वह एक स्‍वतंत्र विदेश नीति को अपना सकता है। साथ ही देश अब कई छोटे देशों का समर्थन भी कर रहा है। अब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार से शुरू हो रहे शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) में शिरकत करेंगे तो शायद वह इसी नीति को आगे बढ़ाएंगे। इस बार एससीओ का आयोजन 15 सितंबर से उज्‍बेकिस्‍तान के समरकंद में हो रहा है। नहीं सुनी अमेरिका और यूरोप की कई ऐसे संकेत हैं जो इशारा करते हैं कि पीएम मोदी जब समरकंद में हिस्‍सा लेंगे तो भारत की नई विदेशी नीति को भी आगे बढ़ाएंगे।अखबार द हिंदू ने विदेश नीति के जानकारों के हवाले से लिखा है कि आज भारत अपने अधिकार के लिए लड़ना जान गया है। बिना किसी के कहे वह अपने साझीदारों के साथ पूरी दुनिया में आगे बढ़ रहा है। जापान की राजधानी टोक्‍यो हो या फिर समरकंद, वह अब सारे पक्षों को साथ लेकर चल रहा है न कि किसी एक का चुनाव करके। यूक्रेन के युद्ध में वह तटस्‍थ रहा तो रूस पर प्रतिबंधों के बाद उसने अमेरिका और यूरोप की नहीं सुनी। रूस, ईरान और चीन भारत को साल 2017 में एससीओ की पूर्ण सदस्‍यता मिली थी। भारत के साथ पाकिस्‍तान को भी उस समय इसका सदस्‍य बनाया गया था। एससीओ राजनीतिक, आर्थिक और सैन्‍य संगठनों का वह एक मंच है जिसका मकसद क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और स्थिरता को बरकरार रखना है। साल 2001 में इसका गठन हुआ और साल 2002 में एससीओ चार्टर साइन किया गया। इसके अगले साल यानी 2003 में यह अस्तित्‍व में आ गया। जिस समय यह संगठन शुरू हुआ था, उस समय रूस, चीन, किर्गिस्‍तान, कजाख्‍स्‍तान और तजाकिस्‍तान इसके सदस्‍य थे। एससीओ की शुरुआत से ठीक पहले पूर्वी लद्दाख में कई प्‍वाइंट्स पर डिस-इंगेजमेंट पूरा हो गया है। रक्षा विशेषज्ञ इस घटना को काफी हैरानी से देखते हैं। उनका मानना है कि चीन भी अब कहीं न एससीओ जैसे संगठन में भारत को एक अहम और मजबूत सदस्‍य के तौर पर स्‍वीकार कर चुका है। दूसरी तरफ ईरान चाहता है कि भारत फिर से उससे कच्‍चे तेल का आयात शुरू कर दे। इस समय जहां अमेरिका, ईरान के साथ परमाणु डील पर बातचीत जारी रखे है, भारत के पास बहुत कम वजहें बचती हैं कि वह क्‍यों न इस देश के साथ तेल के आयात को फिर से शुरू करे। प्रतिबंधों के बाद भी खरीदा तेल रूस पर लगे प्रतिबंधों के बावजूद भारत उससे तेल का आयात कर अपनी ऊर्जा की जरूरतों को पूरा कर चुका है। भारत ने अमेरिका और यूरोप के उस अनुरोध को मानने से इनकार कर दिया था जिसमें प्रतिबंधों के चलते रूस से तेल न खरीदने की बात कही गई थी। भारत सरकार ने इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया। भारत अब रूस के साथ ऊर्जा संबंधों को मजबूत करना चाहता है। रूस के ऑयल और गैस फील्‍ड में भारत पहले ही 16 अरब डॉलर के निवेश का लक्ष्‍य तय कर चुका है। चीनी राष्‍ट्रपति से मीटिंग एससीओ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीन के राष्‍ट्रपति के साथ मुलाकात कर सकते हैं। साल 2014 से 2019 के बीच पीएम मोदी और जिनपिंग 18 बार मुलाकात कर चुके हैं। लेकिन मई 2020 में जब पूर्वी लद्दाख में टकराव शुरू हुआ तो उसके बाद दोनों की यह पहली मीटिंग है। रूस के राष्‍ट्रपति व्‍लादीमिर पुतिन के साथ भी उनकी मीटिंग होगी और कई अहम मसलों पर चर्चा होगी। ईरान के राष्‍ट्रपति के साथ भी उनकी मीटिंग प्रस्‍तावित है और इस मीटिंग में चाबहार पोर्ट टर्मिनल पर बात आगे बढ़ सकती है। ईरान को पिछले साल सितंबर में इस संगठन में शामिल किया गया था। पाकिस्‍तान के साथ भी पीएम मोदी के अलावा पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भी पहली बार इस सम्‍मेलन में शिरकत करेंगे। लोगों का मानना है कि निश्चित तौर पर इसके बाद दोनों देशों के रिश्‍तों पर जो बर्फ जमी हुई थी, वह पिघल सकती है। साल 2016 में उस समय पाकिस्‍तान को अलग-थलग कर दिया गया था जब उरी में आतंकी हमला हुआ। इसके बाद साल 2019 में तत्‍कालीन पाक पीएम इमरान खान ने फैसला किया कि भारत के साथ कोई व्‍यापार नहीं होगा। भारत ने जम्‍मू कश्‍मीर से जब आर्टिकल 370 हटाया तो पाकिस्‍तान ने यह फैसला किया। ऐसे समय में जब पाकिस्‍तान बाढ़ से जूझ रहा है और अफगानिस्‍तान सीमा पर भी अस्थिरता बनी हुई है, पीएम मोदी के साथ एक मीटिंग कर शहबाज अपनी मुश्किलों का हल जरूर चाहेंगे।


from https://navbharattimes.indiatimes.com/world/asian-countries/sco-summit-in-uzbekistan-news-in-hindi-how-india-is-moving-ahead-with-all-alignment-foreign-policy/articleshow/94207880.cms
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