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नीतीश का नया फॉर्म्युला तैयार, सम्राट अशोक के बहाने सीएम ने कर दिया बड़ा खेल, ताकते रह गए कुशवाहा

ओमप्रकाश अश्क, पटना: सम्राट अशोक दुनिया के लिए अनजान नहीं हैं, लेकिन बिहार में उन्हें असली पहचान अब मिली है। बिहार में अशोक अब राजनीति के केंद्र में हैं। इसलिए कि घोर जातिवादी बिहारी समाज में राजनीतिज्ञों ने उनकी जाति का भी पता लगा लिया है। खैरियत है कि कुशवाहा जाति के लोगों के अलावा अशोक की जाति के दूसरे दावेदार अब तक बिहार में सामने नहीं आये हैं। उनके शासन काल के तकरीबन 2328 साल बाद बिहार सरकार ने 2015 में यह घोषणा की थी कि चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी अशोक का का जन्म हुआ था। कुछ लोग तो 14 अप्रैल को उनका जन्मदिन मानते हैं। सीएम नीतीश कुमार ने आज से 8 साल पहले बताया था कि सम्राट अशोक की जयंती को लेकर विवाद था। उन्होंने विशेषज्ञों से इस मामले में सलाह के बाद जयंती की तिथि तय की। यह 2015 का दौर था, जब नीतीश कुमार एनडीए से अलग होकर आरजेडी-कांग्रेस के साथ बने महागठबंधन में शामिल हो गये थे। नीतीश कुमार लव-कुश समीकरण के सहारे सत्ता का स्वाद चख चुके थे और महागठबंधन में भी सिरमौर बने हुए थे।

कुशवाहा वोटों के सहारे नीतीश

अब समीकरण बदल गये हैं। जिस लव-कुश समीकरण के सहारे नीतीश ने अभी तक सत्ता का सुख भोगा है, वह समीकरण अब दरक गया है। तीन-साढ़े तीन प्रतिशत की आबादी वाला लव (कुर्मी) समाज नीतीश के साथ के साथ है या रहेगा, इस पर संदेह के बादल मंडरा रहे हैं। इसलिए कि उनकी ही पार्टी से कभी संबंध रखने वाले लव (कुर्मी) समाज के एक कद्दावर नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह अब नीतीश कुमार के सबसे बड़े दुश्मन हैं। बिहार की पिछड़ी जातियों में यादवों के बाद दूसरी बड़ी आबादी वाले कुश (कोइरी) समाज के दो-दो बड़े नेता अब कुशवाहा वोटों के ठेकेदार होने का दावा कर रहे हैं। यह अलग बात है कि दोनों अलग-अलग दलों से ताल्लुक रखते हैं, लेकिन एक अच्छी बात यह कि दोनों की ट्यूनिंग एक है। इनमें एक हैं राष्ट्रीय लोक समता जनता दल (आरएलएसजेडी) के उपेंद्र कुशवाहा और दूसरे हैं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नवनियुक्त बिहार प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी। हालांकि दोनों का ताल्लुक कभी न कभी नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और आरजेडी से भी रहा है।

जयंती के बहाने कुशवाहा वोट पर नजर

बहरहाल, सम्राट अशोक को मौर्य वंश का शासक मानते हुए बहैसियत सीएम नीतीश कुमार ने बुधवार को राजकीय कार्यक्रम किया तो उपेंद्र कुशवाहा ने अलग से आयोजन किया। बीजेपी ने इसमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखायी। उपेंद्र कुशवाहा कभी बीजेपी के साथ थे और उन्हें नरेंद्र मोदी के पहले मंत्रिमंडल में मंत्री भी बनाया गया था। अनबन होने पर उन्होंने अपनी पार्टी का जेडीयू में विलय कर दिया था और उम्मीद पाले बैठे थे कि जेडीयू में नीतीश के बाद उन्हें दूसरे नंबर का दर्जा जरूर मिलेगा। आरंभ में ऐसा लगा भी था, लेकिन एनडीए छोड़ कर नीतीश ने जब महागठबंधन का साथ पसंद किया तो उपेंद्र कुशवाहा को धक्का लगा। इस धक्के की धमक तब और जोरदार महसूस हुई, जब नीतीश ने आरजेडी के तेजस्वी यादव को प्रमोट करना शुरू किया। फिर क्या था, उपेंद्र कुशवाहा ने अलग राह चुन ली। जेडीयू से अलग होकर अपनी नयी पार्टी फिर बना ली। लेकिन इसे पूरे घटनाक्रम में बीजेपी के प्रति उनका प्रेम हिलोरें मारता रहा।

नीतीश का न्यू प्लान तैयार है!

उपेंद्र कुशवाहा से बीजेपी प्रेम का एक ही उदाहरण काफी है कि उनकी ही बिरादरी के सम्राट चौधरी को जब भाजपा ने अध्यक्ष नियुक्त किया तो बधाई देने में वे आगे रहे। लव-कुश समीकरण के सहारे बिहार की सियासत में परवाज भरने वाले नीतीश कुमार ने तो सम्राट पर तंज ही कसा। उन्होंने यह कह कर उनका मजाक उड़ाया कि वे तो इधर-उधर आते-जाते ही रहते हैं। कभी आरजेडी में थे तो बाद में जेडीयू में आये। अब भाजपा में हैं। सम्राट को अध्यक्ष बनाने पर उनकी यह टिप्पणी शायद ही कुशवाहा समाज को पसंद आयी होगी, जिसके सहारे नीतीश की राजनीति अब तक चलती रही है। उपेंद्र कुशवाहा के अलग होने के पहले नीतीश ने इसी तरह की खिल्ली उड़ाई थी। लव-कुश समीकरण में करीब 10-12 फीसद आबादी कुशवाहा जाति की मानी जाती है। सम्राट और उपेंद्र की जोड़ी ने अगर सच में अपने समाज के वोटरों को साध लिया तो आने वाले दिनों में नीतीश की राजनीति का पराभव निश्चित है।


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