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संपादकीय: आपसी समझदारी बने, जुडिशरी से टकराव ठीक नहीं

केंद्रीय मंत्रिमंडल में गुरुवार सुबह किए गए एक संक्षिप्त बदलाव के कारण किरेन रिजिजू को कानून मंत्री का अपना पद गंवाना पड़ा। उन्हें अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण माने जाने वाले भू-विज्ञान मंत्रालय में भेज दिया गया। उनकी जगह अर्जुन राम मेघवाल को राज्य मंत्री के रूप में कानून मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार दिया गया है। इस घटनाक्रम को कई वजहों से चौंकाने वाला माना जा रहा है। हाल के वर्षों में यह पहला मौका है, जब कानून मंत्री कैबिनेट रैंक के नहीं होंगे। किरेन रिजिजू सरकार के सबसे हाई प्रोफाइल मंत्रियों में गिने जाते थे। अचानक हुए इस बदलाव की कोई वजह नहीं बताई गई है, लेकिन जिस पृष्ठभूमि में ये बदलाव सामने आए हैं ,उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। कानून मंत्री के रूप में किरेन रिजिजू का कार्यकाल न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच असामान्य टकराव और तनाव के लिए याद रखा जाएगा। जजों की नियुक्ति और ऐसे अन्य मुद्दों को लेकर न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच मतभेद होना और कभी-कभी इनका गंभीर रूप ले लेना भी कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। ऐसा अतीत में होता रहा है, लेकिन ये मामले समझदारी से सुलझाए भी जाते रहे हैं। इस बार न केवल जजों की नियुक्ति से जुड़े मतभेद नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर इन दोनों संस्थानों के परस्पर विरोधी स्टैंड से जुड़ गए बल्कि कानून मंत्री के असामान्य रूप से कड़े बयानों के कारण स्थिति ज्यादा जटिल हो गई। मामले की जड़ में था कलीजियम सिस्टम जिसे केंद्र सरकार समाप्त करना चाहती थी। 2014 में सरकार नैशनल जुडिशल अपॉइंटमेंट्स कमिशन एक्ट (एनजेएसी एक्ट) भी लाई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक बता कर निरस्त कर दिया था। उसके बाद से ही न्यायपालिका को ऐसा लग रहा था कि कलीजियम की ओर से भेजे जाने वाले नामों को स्वीकार करने में कार्यपालिका बेरुखी दिखा रही है। दूसरी ओर सरकार का कहना था कि कलीजियम सिस्टम के जरिए जजों की जजों द्वारा नियुक्ति का चलन ठीक नहीं है और इसमें बदलाव किया जाना चाहिए। ये बातें अलग-अलग मौकों पर सार्वजनिक भी की जाती थीं, लेकिन रिजिजू के कार्यकाल में ये अप्रत्याशित रूप से बढ़ गईं। न केवल सुप्रीम कोर्ट ने कलीजियम की सिफारिशों पर अमल में देरी को गंभीर मसला बताते हुए कड़ी प्रशासनिक और न्यायिक कार्रवाई की चेतावनी दी बल्कि कानून मंत्री ने उस पर प्रतिक्रिया देते हुए यहां तक कह दिया कि कोई किसी कोई को धमकी नहीं दे सकता। उन्होंने एक अलग मौके पर यह भी कहा कि देश संविधान से बाहर की कोई व्यवस्था सिर्फ इसलिए नहीं स्वीकार कर लेगा कि वह फैसला कुछ जजों द्वारा लिया गया है। उम्मीद की जाए कि ऐसे सख्त बयानों से न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच बना तनाव अब धीरे-धीरे कम होगा और ठंडे माहौल में गंभीरता के साथ उन मतभेदों को सुलझाने की कोशिश की जाएगी जो दोनों संस्थानों के बीच उभर आए हैं।


from https://navbharattimes.indiatimes.com/opinion/editorial/confrontation-with-judiciary-arjun-ram-meghwal-law-minister-kiren-rijiju/articleshow/100341385.cms
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