न्यूजीलैंड से आया 20 हजार किलो ऊन, लगे 1,000 कारीगर... नए संसद भवन में बिछी उस कालीन की कहानी!
नई दिल्ली: नए संसद भवन की भव्यता दुनिया देख चुकी है। फर्श पर बिछी कालीन इसमें चार चांद लगाती है। इसकी कहानी बड़ी रोचक है। इसे बनाने के लिए न्यूजीलैंड से 20 हजार किलो ऊन मंगाया गया था। यह ऊन अपनी लंबाई, चमक और मजबूती के लिए जाना जाता है। कालीन को बनाने में तकरीबन 1,000 बुनकरों ने दिनरात कड़ी मेहनत की। भदोही की कंपनी Obeetee Carpets को कालीन बनाने का प्रोजेक्ट मिला था। इसके एक वरिष्ठ अधिकारी ने शुरुआत से इस कालीन के पूरे सफर के बारे में बताया है। हिंदुस्तान टाइम्स ने इस अधिकारी के हवाले से रिपोर्ट पब्लिश की है। कंपनी के प्रोडक्शन हेड सुधीर राय ने बताया कि कालीनों के लिए ऊन न्यूजीलैंड के उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्रों से आयात किया गया था। इस ऊन में जबर्दस्त चमक और लचीलापन होता है। यह बात इसे हाथ से बनने वाली कालीनों के लिए सबसे अच्छे फाइबर में से एक बनाता है। लगभग 20 हजार किलो ऊन का आयात किया गया था। बीकानेर की एक कताई मिल में पूरी देखरेख में यार्न तैयार हुआ था। फिर इस यार्न को गोपीगंज की फैक्ट्री में भेजा गया था। कालीन रंगने के लिए खास तकनीक सुधीर राय ने दावा किया कि Obeetee ने कालीनों को रंगने के लिए खास तकनीक का इस्तेमाल किया। उन्हें विशेष तरह की बनावट दी। कालीनों की चमक बढ़ाने के लिए उनकी खास धुलाई की जाती थी। राय ने बताया कि राज्यसभा और लोकसभा के लिए अलग-अलग डिजाइनों का चयन किया गया था। निचले सदन के लिए कालीनों में मोर पंख के डिजाइन हैं। एक ओम्ब्रे को बनाने के लिए 38 रंगों का इस्तेमाल किया गया था। आगंतुकों और मीडिया दीर्घाओं के लिए कालीन अलग तरह का है। राज्यसभा के कालीनों की इंस्पिरेशन राष्ट्रीय फूल कमल से ली गई है। लोटस मोटिफ को 12 रंगों से बनाया गया था। अधिकारी ने कहा कि जिस कारखाने में कालीन बनाए गए थे, उसका ऑडिट भी पार्लियामेंट सिक्योरिटी ने किया था। इसका मकसद नैतिक कार्य प्रथाओं को सुनिश्चित करना था। यह भी तय करना था कि सभी श्रमिकों का आधार रजिस्ट्रेशन हो। राय ने बताया कि फाइनल प्रोडक्ट हासिल करने के लिए 314 करघे और 900 से ज्यादा बुनकर लगे थे। कारीगरों का रहा अनूठा अनुभव जंगीगंज निवासी मास्टर बुनकर गणेश मौर्य के हवाले से रिपोर्ट में बताया गया कि पारंपरिक हथकरघे पर कालीन की बुनाई हुई। बुनाई शुरू करने से पहले डिजाइन के बारे में बताया जाता था।मौर्य ने कहा कि यह बहुत खुशी की बात है कि उनके बनाए कालीन संसद भवन की सुंदरता में चार चांद लगा रहे हैं। इसे बनाने में उन्होंने पांच महीने तक कड़ी मेहनत की है।प्रोजेक्ट से जुड़े एक अन्य कारीगर के हवाले से रिपोर्ट में बताया गया कि रोजाना कालीन को बुना जाता है। लेकिन नए संसद भवन के लिए बने कपड़े को बुनना अपने में अनूठा अनुभव था। कालीन बनाने के लिए लगभग एक हजार बुनकरों ने कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। 70 फीसदी से ज्यादा बुनकर स्थानीय थे। जबकि बाकी पड़ोसी राज्यों से थे।
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