आखिर टूट गया गतिरोध, दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था पर मंडरा रहा आर्थिक संकट टला
अमेरिका में राष्ट्रपति जो बाइडन और स्पीकर केविन मैकार्थी के बीच बनी सहमति के अनुरूप पहले निचले सदन (हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स) ने और फिर ऊपरी सदन (सीनेट) ने कर्ज सीमा समाप्त करने का प्रस्ताव पारित कर दिया, जिससे दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था पर मंडरा रहा डिफॉल्टिंग का संकट टल गया है। कर्ज सीमा समाप्त होने को लेकर विशेषज्ञों ने सोमवार 5 जून की जो डेडलाइन बताई थी, उसमें अभी भी दो दिन का वक्त है। लिहाजा, वैश्विक वित्तीय बाजार चैन की सांस ले सकता है। हालांकि न तो अमेरिका में विधायिका और कार्यपालिका के बीच इस तरह की तनातनी कोई नई बात है और न ही इसका आखिरी पलों में आकर हल होना। लेकिन ऐसा तभी होता है जब विधायिका में विपक्ष बहुमत में होता है और वह ऐसे मौकों का इस्तेमाल करते हुए सरकार को दबाव में लाकर अपनी कुछ बातें मनवाना चाहता है। वरना अक्सर यह सीमा बिना किसी शोर-शराबे और हील-हुज्जत के बढ़ाई जाती रही है। 1960 के बाद से अब तक यह 78 बार एडजस्ट की जा चुकी है। मगर विवाद के मौकों पर कड़ी सौदेबाजी के भी उदाहरण हैं। इस बार भी दोनों पक्षों के बीच तगड़ी सौदेबाजी हुई और जैसा कि राष्ट्रपति बाइडन ने कहा भी कि ऐसे मामलों में किसी भी पक्ष को सौ फीसदी हासिल नहीं होता। दोनों पक्ष थोड़ा-थोड़ा झुके तभी बीच की यह राह निकली, जिसे लेकर सांसदों का एक अति दक्षिणपंथी खेमा नाराज भी रहा। लेकिन उसके विरोध के बावजूद बिल पास होने में कोई बाधा नहीं आई। पिछले कम से कम एक पखवाड़े से यह मुद्दा वैश्विक स्तर पर चर्चा में था और इसी वजह से पिछले महीने राष्ट्रपति बाइडन को ऑस्ट्रेलिया में प्रस्तावित क्वॉड देशों की बैठक में शामिल होने का कार्यक्रम भी टालना पड़ा। हालांकि सभी विशेषज्ञ इस बात पर करीब-करीब एकमत थे कि गतिरोध दूर होना ही है, लेकिन फिर भी इसमें हो रही देरी पर अगर धड़कनें तेज होती जा रही थीं तो उसकी वजह यह थी कि इस अनिश्चितता के प्रभाव सिर्फ अमेरिका तक सीमित नहीं रहने वाले थे। भारत जैसे तमाम देश इसके प्रभाव की जद में आ रहे थे। ग्लोबल फाइनैंशल सिस्टम में अमेरिकी कर्ज बाजार और करंसी की अहम भूमिका को ध्यान में रखें तो यह स्वाभाविक था। आज दुनिया के विदेशी मुद्रा भंडार का 58 फीसदी डॉलर में है। दूसरे नंबर पर यूरो (20 फीसदी) आता है। ये रिजर्व अमेरिकी सिक्यॉरिटीज में लगाए जाते हैं, जिनमें से बहुत सारे सेफ असेट का मानक तय करते हैं। अमेरिकी डेट सिस्टम में विभिन्न देशों के निवेश का स्तर देखते हुए इस तरह की अनिश्चितता वैश्विक वित्तीय स्थिरता के लिए खतरा बन जाती है। हालांकि फिलहाल इसका कोई इलाज भी नहीं है। दूसरे नंबर की इकॉनमी चीन है जो ट्रस्ट के मामले में बहुत पीछे है। यानी अभी दुनिया को समय-समय पर आने वाली ऐसी अनिश्चितता के लिए तैयार रहना होगा।
from https://navbharattimes.indiatimes.com/opinion/editorial/us-economic-crisis-looming-over-the-world-largest-economy-averted/articleshow/100715519.cms