क्या स्टालिन के सहारे पार लगेगी अरविंद केजरीवाल की नैया? समझिए पूरा गणित
नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी (AAP) प्रमुख अरविंद केजरीवाल केंद्र सरकार के जुटाने में लगे हैं। इस कवायद के तहत वह गैर-भाजपा दलों के नेताओं से संपर्क साध रहे हैं। इसका मकसद यह है कि अध्यादेश की जगह लेने के लिए संसद में विधेयक लाए जाने पर केंद्र उसे पारित नहीं करा सके। इसी कड़ी में गुरुवार को केजरीवाल ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से मुलाकात की। स्टालिन ने केजरीवाल को भरोसा दिया कि उनकी पार्टी केंद्रीय अध्यादेश का कड़ा विरोध करेगी। हालांकि, स्टालिन के सहारे केजरीवाल के लिए अपनी नैया को पार लगाना मुश्किल होगा। खासतौर से यह देखते हुए कि प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने केंद्र सरकार के अध्यादेश को समर्थन देने के संकेत दिए हैं। एआईएमआईएम के चीफ असदुद्दीन ओवैसी भी कह चुके हैं कि वह केजरीवाल का कभी समर्थन नहीं कर सकते हैं। संसद में इस अध्यादेश के जरिये इसका भी पता चल जाएगा कि केजरीवाल के साथ कौन-कौन है।दिल्ली कांग्रेस के नेता AAP पर हमलावर हैं। बुधवार को वरिष्ठ कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने साफ कहा था कि वह दिल्ली सरकार के खिलाफ अध्यादेश का समर्थन करते हैं। केजरीवाल को अच्छी तरह से पता है कि उन्होंने विजिलेंज डिपार्टमेंट को कंट्रोल नहीं किया तो उन्हें कम से कम 8-10 साल की जेल होगी। इसी तरह के सुर ओवैसी के थे। AIMIM के चीफ बोले थे कि वह अध्यादेश के खिलाफ लड़ाई में सीएम केजरीवाल का साथ नहीं देंगे। ओवैसी ने कहा था, 'मैं कभी केजरीवाल का समर्थन नहीं कर सकता...मैं केजरीवाल को जानता हूं...वह वास्तविक हिंदुत्व का अनुसरण करते हैं न कि महज उदार हिंदुत्व का।'BJP की राह रोकना नहीं आसान बीजेपी की राह रोकने के लिए केजरीवाल को सभी गैर-बीजेपी दल के नेताओं को अपने पाले में खड़ा करने की जरूरत है। नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, तेजस्वी यादव जैसे नेता केजरीवाल के साथ लड़ाई में साथ खड़े हैं। स्टालिन ने भी इसमें दिल्ली के सीएम का साथ निभाने की बात कही है। तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक) के प्रमुख स्टालिन ने कहा कि केंद्र AAP के लिए संकट पैदा कर रहा है। द्रमुक इसका कड़ा विरोध करेगी।क्या कहता है ? केंद्र ने दानिक्स कैडर के अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग के लिए राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण बनाने को कहा है। इसके लिए उसने 19 मई को अध्यादेश जारी किया था। यह अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिल्ली में निर्वाचित सरकार को पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि से संबंधित सेवाओं को छोड़ अन्य सेवाओं का नियंत्रण सौंपने के बाद आया। अध्यादेश जारी किए जाने के छह महीने के भीतर केंद्र को इसकी जगह लेने के लिए संसद में एक विधेयक लाना होगा। शीर्ष अदालत के 11 मई के फैसले से पहले दिल्ली सरकार के सभी अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग उपराज्यपाल के कार्यकारी नियंत्रण में थे।
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