Latest Updates

जानें वो कौनसी दरगाह जहां हर साल जन्माष्टमी पर भरता है 3 दिवसीय मेला

झुंझुनूं: राजस्थान के झुंझुनूं जिले के नरहड़ गांव में स्थित नरहड़ पीर बाबा की दरगाह, सांप्रदायिक सद्भाव और धार्मिक एकता का एक अनूठा उदाहरण है। हर साल जन्माष्टमी के मौके पर यहां तीन दिवसीय मेले का आयोजन होता है, जिसमें बड़ी संख्या में हिन्दू श्रद्धालु बाबा के दरबार में हाजिरी लगाते हैं। नरहड़ पीर बाबा, जिनका वास्तविक नाम सैयद अलाउद्दीन अहमद था, अजमेर के प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के शिष्य थे। कहा जाता है कि यह दरगाह ख्वाजा साहब की दरगाह से भी पुरानी है। हर साल जन्माष्टमी और उर्स के मौके पर यहां विशाल मेले का आयोजन होता है, जिसमें देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु आते हैं। इस साल भी 25 से 27 अगस्त तक जन्माष्टमी के मौके पर मेले का आयोजन किया जा रहा है। मेले की तैयारी जोरों पर है और उम्मीद है कि इस बार भी लाखों की तादाद में लोग यहां आएंगे। नरहड़ दरगाह कमेटी के चेयरमैन खलील बुडाना ने बताया कि, 'इस बार भी 25 से 27 अगस्त तक जन्माष्टमी पर आयोजित होने वाले मेले की तैयारिया शुरू हो गई है।'

जानें दरगाह की खासियत

नरहड़ दरगाह की खास बात यह है कि यहां हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों के लोग बड़ी संख्या में आते हैं। जन्माष्टमी के मौके पर तो यहां हिन्दू श्रद्धालुओं की संख्या मुस्लिम श्रद्धालुओं से भी ज्यादा होती है। लोग यहां अपनी मनौती लेकर आते हैं और बाबा की मजार पर चादर चढ़ाते हैं।

देश के कोने-कोने से सभी धर्मों के लोग आते

दरगाह कमेटी के चेयरमैन खलील बुडाना ने बताया कि, 'नरहड़ दरगाह में देश के कोने-कोने से हिन्दू-मुस्लिम सहित सभी धर्मो के लोग आते है। मेले की विशेषता है कि कृष्ण जन्माष्टमी के कारण हिन्दू धर्मावलंबियों की मुस्लिमों से अधिकता रहना।' नरहड़ दरगाह में आने वाले ज्यादातर लोग मानते हैं कि यहां आने से उनकी मुरादें पूरी होती हैं। यहां आने वाले कई लोगों ने बताया कि बाबा के दरबार में अर्जी लगाने के बाद उनकी परेशानियां दूर हुई हैं। लोग यहां अपने बच्चों का जात-कर्म और मुंडन संस्कार भी करवाते हैं।

राजपूत राजाओं की राजधानी और 52 बाजार

नरहड़ दरगाह ना सिर्फ धार्मिक मान्यताओं का केंद्र है, बल्कि यह क्षेत्र ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इतिहासकारों के अनुसार, नरहड़ कभी प्राचीन जोध राजपूतों की राजधानी हुआ करता था। कहा जाता है कि उस समय यहां 52 बाजार हुआ करते थे। सहायक निदेशक हिमांशु सिंह ने अपने एक शोध पत्र में लिखा है, 'कभी नरहड प्राचीन जोड राजपूत राजाओं की राजधानी था और उस समय यहां पर 52 बाजार थे।'

लोदी खां और राजपूतों के बीच युद्ध

इतिहासकार यह भी बताते हैं कि लोदी वंश के शासनकाल में यहां का गवर्नर लोदी खां हुआ करता था। एक बार लोदी खां और राजपूतों के बीच युद्ध हुआ, जिसमें लोदी खां को लगातार हार का सामना करना पड़ा। हारते-हारते लोदी खां अपनी सेना और घोड़ों के साथ नरहड़ आ गया। उसकी सेना थक चुकी थी और घोड़े भी दौड़ने से लाचार हो गए थे। तब एक फकीर ने लोदी खां को बताया कि वह जिस जगह पर डेरा डाले हुए है, वह एक पीर बाबा की मजार है।

इसलिए पीर बाबा के टेका जाता है माथा

फकीर ने लोदी खां से कहा कि वह पीर बाबा की मजार से दूर हटकर युद्ध लड़े तो उसे जरुर जीत हासिल होगी। फकीर की सलाह मानकर लोदी खां ने अपनी सेना के साथ पीर बाबा की मजार से कुछ दूरी पर डेरा डाल लिया। कहा जाता है कि उसके बाद हुए युद्ध में लोदी खां को विजय प्राप्त हुई। तभी से लोग उस पीर बाबा को अपना रक्षक मानने लगे और उनकी मजार पर माथा टेकने लगे।

पीर बाबा को 'शक्कर बाबा' क्यों कहा जाता?

नरहड़ पीर बाबा को 'बागड़ का धणी' भी कहा जाता है। मान्यता है कि बाबा के दरबार में सच्चे मन से जो भी मुराद मांगी जाती है, वह जरुर पूरी होती है। यही वजह है कि दूर-दूर से लोग अपनी मनौती लेकर यहां आते हैं। नरहड़ दरगाह में तीन बड़े दरवाजे हैं, जिन्हें 'बुलंद दरवाजा', 'बसंती दरवाजा' और 'बंगाली दरवाजा' के नाम से जाना जाता है। इन तीनों दरवाजों के बाद पीर बाबा की मजार और एक मस्जिद है। मजार का गुंबद चिकनी मिट्टी से बना हुआ है, जिसमें कहीं भी पत्थर का इस्तेमाल नहीं किया गया है। लोगों का मानना है कि कभी इस गुंबद से शक्कर बरसती थी, इसीलिए पीर बाबा को 'शक्कर बाबा' भी कहा जाता है।

मजार के पास महिलाओं का प्रवेश वर्जित?

दरगाह परिसर में ही तीन मुसाफिरखाना भी बने हुए हैं। यहां पीर बाबा के एक साथी को भी दफनाया गया है, जिसे 'धरसो वालों का मजार' कहा जाता है। बुलंद दरवाजे का निर्माण सरदार शहर निवासी और आंध्र प्रदेश के प्रवासी प्रताप सिंह छाजेड़ ने करवाया था। यह दरवाजा 75 फीट ऊंचा और 48 फीट चौड़ा है। आज से 84 साल पहले मजार के प्रवेश द्वार पर चांदी की परत अहमद वक्स रुकबुद्दीन ने चढ़वाई थी। हरियाणा के एक श्रद्धालु सवाई सिंह ने पीतल का 45 किलोग्राम वजनी छत्र बनवाकर गुंबद पर लगवाया था। दरगाह के मुख्य द्वार पर बनी खिड़की से होकर गुजरने को 'स्वर्ग द्वार' पार करना माना जाता है। मजार के पास महिलाओं का प्रवेश वर्जित है।

जन्माष्टमी पर होते हैं ये कार्यक्रम

जन्माष्टमी के मौके पर नरहड़ दरगाह पर लगने वाले मेले में कव्वाली, रात जागरण और 'जकड़ी' जैसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। कव्वाली कार्यक्रमों का आयोजन श्रद्धालुओं द्वारा किया जाता है। इस दौरान लोग अपने बच्चों का जात-कर्म और मुंडन संस्कार भी करवाते हैं। नरहड़ दरगाह पर शोध कर चुके सहायक निदेशक जनसंपर्क हिमांशु सिंह का कहना है कि, 'जन्माष्टमी पर्व के अवसर पर आयोजित मेले का लुत्फ किसी दरगाह में उठाना है, तो राजस्थान में झुंझुनू जिले के गांव नरहड में चले आइए। जन्माष्टमी के अवसर पर कव्वाली, रातीजगा और जकडी के कार्यक्रम आयोजित होते हैं। कव्वाली के कार्यक्रमों का स्वरूप श्रद्वांजलियों जैसा होता है। इस दौरान यहां जात और बच्चों के मुंडन संस्कार भी सम्पन्न होते हे।'

यहां की मिट्टी में चमत्कार ?

हिमांशु सिंह ने आगे बताया, 'साल में इस दरगाह के दो प्रसिद्व कार्यक्रम सालाना उर्स मेला एवं तीन रोज भदवा मेला जन्माष्टमी के अवसर पर आयोजित होते हैं, जिनमें हजारो की तादाद में हिन्दू-मुस्लिम क्या गरीब क्या अमीर सभी शरीक होकर बाबा का आर्शीवाद प्राप्त करते हैं।' नरहड़ दरगाह में आने वाले लोगों का मानना है कि यहां की मिट्टी में चमत्कारिक शक्ति है। मानसिक रूप से बीमार लोगों को यहां की मिट्टी शरीर पर मलने से आराम मिलता है। कई लोग तो यहां की मिट्टी अपने साथ ले जाते हैं। दरगाह में लगे एक पेड़ पर लोग अपनी मनौती पूरे होने की कामना से धागे बांधते हैं।


from https://navbharattimes.indiatimes.com/state/rajasthan/jhunjhunu/janmashtami-fair-at-narhad-dargah-in-jhunjhunu-rajasthan-full-update/articleshow/112719516.cms
'; (function() { var dsq = document.createElement('script'); dsq.type = 'text/javascript'; dsq.async = true; dsq.src = '//' + disqus_shortname + '.disqus.com/embed.js'; (document.getElementsByTagName('head')[0] || document.getElementsByTagName('body')[0]).appendChild(dsq); })();