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11 वर्ष का बीमार बच्चा, जिद, जुनून और दृढ़ इच्छा शक्ति... ऐसी है चैंपियन मेसी की कहानी

नई दिल्ली: आखिरकार लियोनेल मेसी का विश्व कप जीतने का अधूरा सपना पूरा हुआ। एक ऐसा सपना जो उनके साथ पूरी दुनिया ने देखा और उसके पूरे होने की दुआ की। केरल से लेकर कश्मीर तक भारत भर में और दुनिया के हर कोने में इस फाइनल ने पूरी दुनिया को मेसी के रंग में रंग दिया। बरसों में बिरला ही कोई खिलाड़ी होता है जिसका इस कदर असर मैदान पर और मैदान के बाहर नजर आता है। मैदान पर असर ऐसा कि पहले कदम पर मिली हार के बाद पूरी टीम का मनोबल यूं बढाना कि फिर आखिरी मोर्चा फतह करके ही दम ले।

पेले और माराडोना की लिस्ट में शामिल हुए मेसी

शायद पेले और डिएगो माराडोना के बाद वह पहले फुटबॉलर हैं जिनका जादू पूरी दुनिया के सिर चढ़कर बोला है। यह ट्रॉफी उनके लिए कितना मायने रखती है, यह इसी बात से साबित हो गया कि गोल्डन बॉल पुरस्कार लेने के लिए जब उनका नाम पुकारा गया तो पहले वह रूके और ट्रॉफी को चूमा। मैदान के बाहर उनका करिश्मा ऐसा कि उनका सपना हर फुटबॉलप्रेमी का सपना बन गया। पल पल पलटते मैच के हालात के साथ दर्शकों की धड़कने भी तेज होती रही। मेसी के हर गोल पर जश्न मना और खिताब जीतने पर अर्जेंटीना से मीलों दूर शहरों में भी आतिशबाजी की गई।

11 वर्ष की उम्र में गंभीर बीमारी से पीड़ित थे मेसी

मात्र 11 बरस की उम्र में ग्रोथ हार्मोन की कमी (जीएचडी) जैसी बीमारी से जूझने से लेकर दुनिया के महानतम फुटबॉलरों में शामिल होने तक मेसी का सफर जुनून, जुझारूपन और जिजीविषा की अनूठी कहानी है और रविवार को फाइनल में टीम को खिताब दिलाकर वह फुटबॉल के इतिहास की जीवित किंवदंती बन गए। अब इस बहस पर भी विराम लग जाएगा कि माराडोना और मेसी में से कौन महानतम है। देश के लिए खिताब नहीं जीत पाने के मेसी के हर घाव पर भी मरहम लग गया। सात बार बलोन डिओर, रिकॉर्ड छह बार यूरोपीय गोल्डन शूज, बार्सीलोना के साथ रिकॉर्ड 35 खिताब, ला लिगा में 474 गोल , एक क्लब (बार्सीलोना) के लिए सर्वाधिक 672 गोल कर चुके मेसी को विश्व कप नहीं जीत पाने की टीस हमेशा से रही। उन्हें पता था कि यह उनके पास आखिरी मौका है और 23वें मिनट में पेनल्टी पर गोल करने से पहले आंख मूंदकर शायद उन्होंने इसी प्रण को दोहराया।

सऊदी अरब से हार और मेसी ने पकड़ ली रफ्तार

अर्जेंटीना ने जब आखिरी बार 1986 में विश्व कप जीता तब माराडोना देश के लिए खुदा बन गए हालांकि फाइनल में उन्होंने गोल नहीं किया था। उनके आसपास पहुंचने वाले सिर्फ मेसी थे लेकिन विश्व कप नहीं जीत पाने से उनकी महानता पर ऊंगलियां गाहे बगाहे उठती रहीं। ऊंगली तब भी उठी जब 2014 में फाइनल में जर्मनी ने अर्जेंटीना को एक गोल से हरा दिया था। सवाल तब भी उठे जब इस विश्व कप के पहले ही मैच में सऊदी अरब ने मेसी की टीम पर अप्रत्याशित जीत दर्ज की। उस हार ने मानो अर्जेंटीना और मेसी के लिए किसी संजीवनी का काम किया। मैच दर मैच दोनों के प्रदर्शन में निखार आता गया और पिछली उपविजेता क्रोएशिया को एकतरफा सेमीफाइनल मुकाबले में हराकर वह फुटबॉल के सबसे बड़े समर के फाइनल में पहुंच गए। इस जीत के सूत्रधार भी मेसी ही रहे जिन्होंने 34वें मिनट में पेनल्टी पर पहला गोल दागा और फिर जूलियर अलकारेज के दोनों गोल में सूत्रधार की भूमिका निभाई। आर्थिक अस्थिरता से जूझ रहे अपने देशवासियों के लिए मसीहा बन गए मेसी और पूरे अर्जेंटीना को जीत के जश्न में सराबोर कर दिया। मेसी का विश्व कप का सफर 2006 में शुरू हुआ और अब तक वह सबसे ज्यादा 25 मैच खेल चुके हैं। विश्व कप के इतिहास में अर्जेंटीना के लिए सर्वाधिक 11 गोल कर चुके हैं। उम्र को धता बताकर इस विश्व कप में चार गोल, दो में सूत्रधार की भूमिका निभाने के बाद तीन ‘मोस्ट वैल्यूएबल प्लेयर’ के पुरस्कार जीत चुके हैं। रोसारियो में 1987 में एक फुटबॉल प्रेमी परिवार में जन्मे मेसी ने पहली बार घर के आंगन में अपने भाइयों के साथ जब फुटबॉल खेला तो किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन दुनिया के महानतम खिलाड़ियों में उनका नाम शुमार होगा। बार्सीलोना के लिए लगभग सारे खिताब जीत चुके पेरिस सेंट जर्मेन के इस स्टार स्ट्राइकर ने 2004 में बार्सीलोना के साथ अपने क्लब कैरियर की शुरूआत 17 वर्ष की उम्र में की। उन्होंने 22 वर्ष की उम्र में पहला बलोन डिओर जीता। अगस्त 2021 में बार्सीलोना से विदा लेने से पहले वह क्लब फुटबॉल के लगभग तमाम रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके थे। मेसी ने विश्व कप में पदार्पण 2006 में जर्मनी में सर्बिया और मोंटेनीग्रो के खिलाफ ग्रुप मैच में किया जिसे देखने के लिए माराडोना भी मैदान में मौजूद थे। 18 वर्ष के मेसी 75वें मिनट में सब्स्टीट्यूट के तौर पर मैदान पर उतरे थे। बीजिंग ओलिंपिक 2008 में अर्जेंटीना ने फुटबॉल का स्वर्ण पदक जीता तो 2010 विश्व कप में मेसी से अपेक्षाएं बढ़ गईं। अर्जेंटीना को क्वार्टर फाइनल में जर्मनी ने हराया और पांच मैचों में मेसी एक भी गोल नहीं कर सके। चार साल बाद ब्राजील में अकेले दम पर टीम को फाइनल में ले जाने वाले मेसी अपने आंसू नहीं रोक सके जब उनकी टीम एक गोल से हार गई। इसके बाद 2018 में रूस में पहले नॉकआउट मैच में अर्जेंटीना को फ्रांस ने 4-3 से हरा दिया और तीन में से दो गोल मेसी के नाम थे। पिछले चार साल में इस महान खिलाड़ी ने एक ही सपना देखा ...विश्व कप जीतने का। क्वार्टर फाइनल में मिली जीत के बाद खुद मेसी ने कहा था, ‘डिएगो आसमान से हमें देख रहे हैं और विश्व कप जीतने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। उम्मीद है कि आखिरी मैच तक वह ऐसा ही करते रहेंगे।’ निस्संदेह माराडोना का आशीर्वाद इस मैच में मेसी के साथ था।


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